श्रावक प्रतिक्रमण - सूत्र | Shrawak Pratikraman - Sutra

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Book Image : श्रावक प्रतिक्रमण - सूत्र  - Shrawak Pratikraman - Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“ उ्या्या ' व्याख्या : ११. [. किन जीवों की विराधना की हो ? 3 इन जीवों की मैने विराधना की हो; जसे कि एकै- न्द्रिय = एक रपदां इन्द्रिय वाले प्रथिवी झादि पाँच स्थावरः दीन्द्रिय = दो स्पशंन श्रौर रसन इन्द्रिय वाले कीडे प्रादि; त्रीस्द्रिय न तीन स्पदान, रसन, घ्राण इन्द्रिय वाले जरू कीड़ी रादि; चतुरिन्द्रिय = चार स्पक्लंन, रसन, घ्राण, चक्षु इन्द्रिय वाले मवखी मच्छर प्रादि; पञ्चेन्द्रिय = पांच स्पर्शान-त्वचा, रसन = जिह्वा, घ्राण = नाक, चक्षु = ग्रांख, श्रोत्र = कान इन्द्रिय वाले सपं मँढक श्रादि। [ क्रिस तरह की पीड़ा दी हो ? ) सामने झ्राते पैरों से मसले हों, धूल या कीचड़ झ्रादि से ढँके हों, भूमि पर रगडे हों, एक दूसरे से भ्रापस में टकराए हों, छूकर पीड़ित किए हों, परितापिह--दुःखित किए हों, मरण-तुल्य किए हों, भयभीत किए हों, एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदले हों, कि बहुना, प्राण- रहित भी किए हों, तो मेरा वह सव पाप मिथ्या = निप्फल होवे । जन धमं मे विवेक का बहुत महत्त्व है। प्रत्येक क्रिया में विवेक रखना, यतना करना, श्रमण एवं श्रावक दोनों साधकों के लिए श्रावश्यक हैं। जो भी काम करना हो, सोच-विचार कर, देख-भाल कर, यतना के साथ करना चाहिए । पाप का मूल प्रमाद है, श्रविवेक है । साधक के जीचन..में विवेक के प्रकाश का बड़ा महत्त्व है । 'प्ालोचना्यूप' विवेक श्रौर यतना के. संकल्पों का जीता-जागता ~ ---~----- ~~ ~ = ~~~ = = ~ नन




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