अनुत्तरोप्राप्तिक दशसूत्र | Anuttaroprapatik Dasha Sutra

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Anuttaroprapatik Dasha Sutra by विजय मुनि शास्त्री - Vijay Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिषा कौ परिचत-रैसा | [ (१ शिप्रेपाषस्यक्‌ भाष्य মৃস্মকা निमीष হা दशा बैकालिक पस्च बढ़य भूवि जियू क्ति घ्ौर पस्य तरह दृति मी प्रामर्मों कौ घ्यास्पा है। १एचतु यह पष्ठ में भ होकर पथ में होती है, पोर शैबस प्राक्त में मे होकर भाइुत एवं संछत धोगी म होतो है। चूजियोँ शा समय लममय दछात्ैणी-पाऽबी पती ६। दृचि मे जिषे महल দা नाम नरिप रस्मैएवीप ६ । ছলক্ষা পদ जिह्म को सल्ली पती है । ছস্াপ লল্ী দাহ মুশা নং দী স্কাপলিলী ই। ঘল্লে লক্ষ শিঘীশ স্যরি तो बड़े जिस्तार सै है। पसस्‍्त्त चृजियों পিঘীন সুপ ঘমটা प्रथिक महत्त्व पूर्ण है एपयें साथक लौदत का बढ़ा ही सजीव जि सिवा षयवा है, गिशीब-भृद्धि के बहत-से गिच्वार हो इतने बम्मीर प्रौर रहस्य पूर्ज है कि पनैक बड़-बृद्धि एर्व भन्‍्द-मति लोप रतका দাশ জী অহ करते में समर्थ तह हो पाते । किन्तु जो गिज्ाष हैं, थो प्राजम-तत्वज्ञ हैं थे इसई प्रप्पयत से परम प्रमन्न होते हैं । छावक भोगल के कतार बढ्ाद का इसमें শিলুল वर्षत है। भाभार, विचार, पत्सर्म भौर प्रषषाद का इतना सुर्र दर्घत प्रस्पन दुर्लभ है। जौशकरल्न भू के भत्ता सिद्ध सै सूरि ह । सवका धपय जित्रम षै बारहबीष्लौ है | वृदचस्त 'भूजि प्रशम्य पूरि कौ रबता है। दए्जैवासिक पर बिमरास सदत्तर कौ भूचि तो ई ही परल्तु प्रयौ इधबैकालशिक गर एक चूत एपलण्द प्रोर हुए है इसह प्रभेठा प्रचस्‍त्प दूरि हैं। ध्रागर्भों के विष শিলা पष्चित बैचर शाद त्री इतका सम्पाइत कर रहे हैं। तिए्रौद-धुचत्रि, साप्य के लाब हैं हष्मति शामपौठ ध्राषप से प्रक्यप्नित हो चुफौ है| कुछ प्रिय 'दूर्षियाँ मे हैं... धांपश्यक । (\.| द बैकाचिक লী प्रधुपोग बार बत्तराध्यवत प्राचारंप সুদ জলা निष ष्धबहार रप्राघुत स्कश्व शै




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