श्राद्ध विधि प्रकरण | Sraddh Vidhi Prakaran
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
460
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्राद-विधि प्रकरण ७
था, डस नग बडे ही दयालु रोग रहते थे । हर एक तर्द से सखद्धिशाली भौर सावार भलुष्यों की बस्ती
थाले उस नगर में देवकुमार के रुप समान और शब्रुओं को सन्तप्त करने में असि के समान तथा राज्यल्ष्मी,
न्यायलकषमी भौर धर्म्मो पं तीनों प्रकारकी छष्मी जिस के घर पर स्पर्दा से परस्पर वद्धि को प्राप्त होती
है | इस प्रकार का रुपध्वल राज़ाका प्रतापी पुत्र मकरध्वज नाम का राज्ञा राज्य करता था । एकबार कीड़ा
रसमय चसंतनऋतु में वद याज्ञा अपनी रानियोंके साथ क्रीड़ा करने के लिये वाग में गया । जलकीड़ा, पुष्पक्रीड़ा
प्रमुख विविध प्रकार की अन्तेडस्यों सहित क्रीड़ाएं करने लगा । जैसे कि इस्तिनियों सहित कोई हाथी क्रीडा
करता है। करोड़ो करते समय राज्ञा ने उस वाग कै अन्दर पक वड़े दी सुन्दर ओर सधन आम कै वृक्ष को
देखा । उस वृक्ष की शोभा राज्ञा के चित्त को मोहित करती थी | कुछ देर तक उसकी मोर देखकर राजा उस
रक्षका ल प्रकार वणन करने ठगा ।
छाया कापि नगतुपरिया दरति दतेऽतुरं भेगरम् ।
मंजपुद्गम एव निः उरुफठे (ति निमितं परं ॥
णाकाराश्च मनोहरास्तस्वरम्रेणिषु खन्रुयता ।
खयां कटपरो रसार्फल्दो तुमस्तवैष टुवम ॥ १ ॥
हे मिष्ट फक दैनेवाटे आघ्रृश्च ¡ यह तेरी खुन्दर छाया तो कोई अलौकिक ऊगतप्रिय है । तेरी पत्रपंकियां
तो अतुल म॑गलकारक हैं । इन तेरी कोमल मश्रियो का उत्पन्न दोना उत्छृषट बडे फटों की शोभा को ही कारण
है, वेय वा दृश्य भी षडा हो मनोहर ह, तमाम धुक्ष की पंक मेँ तेरी ही मुख्यता है, विरोष कया- घणन
किया जाय, तु श पृथ्वी पर करपवृक्ष है ।
इस प्रकार राजा आम के पेड़ की प्रशंसा कर के जैसे देवांगनाओं को साथ लेकर देवता लोग नंदनवन मैं
कट्यवृक्षकी छाया का आश्रय छेते है वैसे ही आद्र आनन्द् सहित राजा भपनी पत्नियों को लेकर उस घृक्ष की
शीतल छाया में भा बैठा सूत्तिवंत शोभासमूद के समात अपने स्वच्छ अन्तेडर वर्ग को देखकर गर्च में आाकर
राजा ख्याल करने लगा कि यह एक विधाता की बड़ी प्रसन्नता है कि ज्ञो तीन जगत से सार का उद्धार करके
मुझे इस प्रकारका स्रीसमूदद समपंण किया है । ज्ञिस प्रकार गृद्दों में सं ताराएं चन्द्रमाकी स्त्री रुप हैं बैसे ही
वैसा खच्छ भौर सर्वोत्छृ्ट अन्तःपुर मेरे सिवा अन्य किती भी राजाके यहां न होगा । वद्रंकाखमे जैसे
नदियों का पानी उमड़कर चादर आता दै बैसे दी उस राजाका हृदय भी मिथ्यासिमान से अत्यन्त दड़प्पन से
उमड़ने ठगा । इतनेही में समय के उचित चोलनेवाला मानों कोई पंडित दी न हो ऐसा एक तोता उस आपके
घृक्षपर बैठा था इसप्रकार इछोक योटने लगा ।
-. शुद्रस्यानि न कश्य ह्यादूगवोधित प्रकश्थितः |
दोते पातववाव्योग्त! पादादुसथिप्यारीईम; ॥
ज़िस प्रकार सोते समय रोड़ी नामक पदी सपने मन्म यह अभिमान कता है कि मेरे उवे पैर रखने
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