बलिया में क्रांति और दमन | Baliya Men Kranti Aur Daman.
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्रांति की एप्ठ सुंमिं
१९४९ के प्रारंभ में द्वितीय महासमर बड़े जोरों पर चल
रहा था । रूस में जर्मनी की सेनायें बढ़ी चली
१८४२ का पूर्वाद् जाती थीं | झक्तरीकन मोर्चा पर मित्र सेनाओं
के प्रति दिनि नीचा देखना पडता था ।
ग्रशान्त महासागर मे जापान का वोलवाज्ञा था । वषं के
प्रारम्भ से ही भारत पर जापानी आक्रमण की आशङ्का
होने लगी थी । वर्ष के प्रथम दिवस के अवसर पर भारत के प्रधान
सेनापति ने संदेश देते हये कहा--भारत मेँ सन १९४१ ने महीयुद्ध
के हमार निकट ला दिया है जिससे हमारे उपर नये खतरे और
नई जिम्दारियां आ गई' हैं* ।
युद्ध की विभीपिका से भारत त्रस्त दो उठा था । जापानी
आक्रमण से अपने धन-जन की रक्षा करने की लालसा सव
के दिल में थी किन्तु त्रिटिश सरकार भारत को आत्मरक्ता
के लिये न तो जिम्मेदारी देने को तैयार थी चौर न
भारतीयों के पास निजी शसखाख थे जिनसे सैन्य वल का सुकावला
किया जाता । त्रिटिश सरकार दृद थी] वह भारत की- रक्षा
तथा शासन सम्बन्धी मामलों में कोई व्यापक परिवर्तन करने को
तैयार न थी ।
है ९16 70 अपर्तीध, 1941 45 एष्ट पल क्थ्यः
द्वाः 10 पऽ वयत् 185 [7०पटा६ फल्ला वदण्ूट्ड धणे
165]00057)0111965.
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