नेताजी सम्पूर्ण वाडमय भाग - 9 | Netaji Sampurn Vadmay Bhag - 9

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Netaji Sampurn Vadmay Bhag - 9 by शिशिर कुमार बोस - Shishir Kumar Bose

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७) साभ्राज्ययाद-विरोधी आदोलन को खडि करने और उसे दबाने के उददैश्य से बनाए गए साम्राज्यवादी सविधान को स्वीकार करने के विरोध मे टिप्पणी करते समय बोस ने का बटवादा कल्के खासन करने की नीति सत्त! मे बैठी सरकार के लिए वरदान है। तानाशाह राजकुमारो और नाटकीय ढग से निर्वाचित ब्रिटिश इडिया के प्रतिनिधियों मे वोस ने विभाजन के सिद्धाठो के प्रति झुकाव महसूस किया। इसीलिए उन्होने मारत सरकार अधिनियम, 1995 के सीय भाग का दिरोध करने का आग्रह किया | बोरा को आशका थी कि यदि यह योजना किसी प्रकार असफल भी हो गई तौ अग्रेज मारत के विभाजन का कोई अन्य सवैधानिक मार्ग खोज निकालेगे और इस प्रकार भारतीय लोगो फे हाथो मे सत्ता देने की योजना को निष्फल कर देगे | दूसरी ओर उनका यह भी मानना था कि अपनी विभाजक नीतिया के परिणामस्वरूप अग्रेज स्वत्त ही राजयीति के हैतवादीजात मे फर्सते चले जा रहे है ~ बाहे वह भारत फिलस्तीन मिस्र ईराक मे हो था आयरलैड मे | इसीलिए सुभाषचद्र बोस ने भारत के अत्पसख्यकी का प्रश्न उठाया और धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक मुद्दों पर आपसी समझा तथा जियो और जीने दो की भीति अपनाने की सलाह दी। उन्होने तथाकथित दलित परम को न्याय देने के मुद्दे पर भी चर्चा की । पिभिन्न भाषाई क्षेत्र की सास्कृतिक स्वागत्तत्ता का बढावा देने क॑ साथ साथ सुभाषचद्र बोस ने हिंपुसाानी (हिंदी और उर्दू का मिला-जुला रूष) छो रोमन लिपि मे आम भोलचाल की भाष के रूप में स्वीकृति प्रदान करने की बात्त कही । उनका कहना था कि एक गजबूत कद्रीय सरकार के माध्यम से भारत को एकीकृत करने के लिए ऐसा सतुलन कायम करना आवश्यक है, जिसमे सभी अल्पसरब्धक वर्गी आर प्रातो को सुख-चैन से जीने दिया जाए ओर उटहे सास्वृतिक व सरकारी मागलो भे पूर्ण स्वायत्ते प्ररान की जाए। स्थतेत्रता के लिए तैयार रहने की जरूरत को महसूस करते हुए सुभाषचद्र ने आजाद भारत के लिए अपने दो दीर्घफालीन कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार फी । नके विचार मे प्रमुख समस्या बढती हुई आबादी थी, सबसे पहले जिसका निदान आवश्यक है। सभवत वह भारतीय नेताओ गे से पहले नेता थे जिन्होंने जनसख्या-नियत्रण की नीति बनाई । राष्ट्र के पुनर्निर्माण' के प्रश्न से जुडी प्रमुख समस्या यह थी कि देश से निर्धनता को खत्म कंसे किया जाए। इसक लिए हमें भूमि व्यवरथा में सुधार की जरूरत होगी इसमे जर्मीदारी प्रथा समाप्त करना मी शामिल है। किसानो को ऋण कं बोझ से छुटकारा दिलाना होगा और गामीणो को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध फराना होगा, किंतु आर्थिक समस्याओ के निदाव के लिए फृपि क्षेत्र मे किए गए सुधार दी पर्याप्त नी है! इसके लिए राज्य द्वारा निर्देशित औद्योगिक विकास की महत्वाकाक्षी योजना की आपश्यफता है| आधुनिक ओद्यागीकरण को हम कितना भी भापसद और उसके दुष्प्रभावों की कितनी ही आलोचना क्यो न करे हमारे लिए पूर्व-औद्योगिक काल मे लौटना सभव नहीं । इसके लिए हम चाहे कितनी भी कोशिश कर हो | स्वतद्र भारत मे सपूर्ण कृषि और औद्योगिक ढाचे का उत्पादन और विनिमय के क्षेत्र मे क्रमश समाजीकरण करने के उद्देश्य से हगे




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