भजनावली | Bhajnawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निर्ीप रूप से किया गया है ।.यह धुराण,--सामान्यतया पुराण , ५: स्वरूप माना जाता है उससे वहूुत उक्छृ्ट--ष्िन्दुओं के भक्तिपरक सादित्य का सार है। वद दरिेमर्ो कौ निधि है। वद्द दिव्य ज्ञान का श्रन्थ है। वह नेष्कमंता का प्रतिपादन करत! हैं। कहा जाता है क्रिश्री कृष्ण्‌ चैतन्य (गौरांग) इस श्न्थ को भारतीय आध्यात्मिक रचनाओं सें सर्वोत्क्ट सानते थे। शुद्ध आध्यात्सिक धर्म का वह्‌ एक मदान्‌ प्रमाण प्न्य है जो धर्म, चरथं यौर काम का नटी, वरन्‌ साक्तात्‌ मोत्त का साधित है | जो लोग उसके अन्दर न्यूनताओं चौर दोषों को ही खोजने जाते हैं, उनको भी मोद हैने की सामथ्ये उसमें है। बह सम्पूर्ण अ्रन्थ भक्त; बैराग्य और ज्ञान के उन्नत बिवेचनों से लवालव मरा हुआ है। जड़ भरत, क्षम देव, अवन्ती के ब्राह्मण ने संन्यास और ज्ञान का जो श्रादशं श्रस्तुत किया; घर, प्रह्माद और अम्बरीष ने भक्ति का जो आदश दिखाया, नारद, कपिल ने जी दर्शन प्रस्तुत किया और इन सबसे चढ़ कर भगवान, श्रोकण्ण ने अपने परम भक्त सिष्य उद्धव के सामने जो उपदेश दिया और जो. अमर जीवन दिखाया, सवका हादे श्री सद्‌भागवत्त ६ । श बट र सक्ति के विषय सें बितरडावाद करना या उसे गलतत छथ मे प्रस्तुत करना शोचनीय झपराध है, क्योंकि इश्धर-प्रेम, ईश्वर-पूजन श्रौर ईन्धर से एकात्मता की प्राप्ति सव यर्म क ही आशव दै। अलस्ड आनन्द की जो उच्छृष्ट कल्पना [ सौलह |




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