अचल मेरा कोई (सामाजिक उपन्यास) | Achal Mera Koi (Samajik Upanyas)
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ अचल मेरा कोई
परन्तु दूकानदारों और दूकानों पर जमी हुई या चंचल भीड़ का ध्यान
उस पर से रिपट रिपट कर सुधाकर पर श्रथिक ठहर राथा] वह
लखपती घराने का दै। लखपती का लडका जेल गया ! इससे बढ़कर
त्याग और क्या हो सकता है !
प्रचल की समम में बात श्रागई--श्रौर समाज में धनियों की इस
प्रतिष्ठा से उसका जी कुढ़ गया । श्रादर सम्मान, विराम विश्राम के लिए.
घन ज़रूरी है | पर वरदा कौन है? सरस्वती श्र लक्ष्मी की वहीं पुरानी
लडाई । किन्तु उल्लू पर लक्ष्मी की सवारी की कल्पना करते दी उसको
सान्त्वना मिल गई--श्रौर फिर वदद ऐसा दरिद्र भी न था । उसके घर में
भी पैसा था ग्रौर वह लेन-देन या किसी ऐसे उपायों से नहीं झ्ाया था ।
स्वास्थ्य उसका श्रच्छाथा। वह सीधा चल रहा था । मार्ग पर
उसके पैर फूल की तरह पड़ रहे थे । सुघाकर की झ्राकृति कुछ अधिक
सुन्दर होने पर भी देद्द उतनी स्वस्थ न थी । यदद आ्रन्तर तुरन्त उसको
एक ऊँचे त्तर पर ले गया, परन्तु उसी कण उसके जी में श्नुकम्पा
का प्रवाद् श्राया | तुलना ने ग्लानि उत्पन्न की श्र उसने भीतर ही भीतर
मनाया, सुधाकर का स्वास्थ्य अच्छा हो जाय, उससे इस विधय पर कभी
चर्चा करूंगा |”
श्रचल ने निश्चय किया, घन को बढ़ाऊँगा । देश के कामों पर
खच करूँगा, क्यों कि किसी कवि ने ठीक कहा है, “भूखे भगत न दोय
भुश्रालू ।*
जलूस ने समय च्राने पर श्रपनी शक्ति खच करदी और सब्र
लोग अ्रपनी श्रपनी घुन में लग गए ।
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