अचल मेरा कोई (सामाजिक उपन्यास) | Achal Mera Koi (Samajik Upanyas)

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Achal Mera Koi (Samajik Upanyas) by वृंदावनलाल वर्मा - Vrindavan Lal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ अचल मेरा कोई परन्तु दूकानदारों और दूकानों पर जमी हुई या चंचल भीड़ का ध्यान उस पर से रिपट रिपट कर सुधाकर पर श्रथिक ठहर राथा] वह लखपती घराने का दै। लखपती का लडका जेल गया ! इससे बढ़कर त्याग और क्या हो सकता है ! प्रचल की समम में बात श्रागई--श्रौर समाज में धनियों की इस प्रतिष्ठा से उसका जी कुढ़ गया । श्रादर सम्मान, विराम विश्राम के लिए. घन ज़रूरी है | पर वरदा कौन है? सरस्वती श्र लक्ष्मी की वहीं पुरानी लडाई । किन्तु उल्लू पर लक्ष्मी की सवारी की कल्पना करते दी उसको सान्त्वना मिल गई--श्रौर फिर वदद ऐसा दरिद्र भी न था । उसके घर में भी पैसा था ग्रौर वह लेन-देन या किसी ऐसे उपायों से नहीं झ्ाया था । स्वास्थ्य उसका श्रच्छाथा। वह सीधा चल रहा था । मार्ग पर उसके पैर फूल की तरह पड़ रहे थे । सुघाकर की झ्राकृति कुछ अधिक सुन्दर होने पर भी देद्द उतनी स्वस्थ न थी । यदद आ्रन्तर तुरन्त उसको एक ऊँचे त्तर पर ले गया, परन्तु उसी कण उसके जी में श्नुकम्पा का प्रवाद्‌ श्राया | तुलना ने ग्लानि उत्पन्न की श्र उसने भीतर ही भीतर मनाया, सुधाकर का स्वास्थ्य अच्छा हो जाय, उससे इस विधय पर कभी चर्चा करूंगा |” श्रचल ने निश्चय किया, घन को बढ़ाऊँगा । देश के कामों पर खच करूँगा, क्यों कि किसी कवि ने ठीक कहा है, “भूखे भगत न दोय भुश्रालू ।* जलूस ने समय च्राने पर श्रपनी शक्ति खच करदी और सब्र लोग अ्रपनी श्रपनी घुन में लग गए ।




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