डिंगल गीत साहित्य | Dingal Geet Sahitya

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Dingal Geet Sahitya by नारायण सिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डिगल गीत साहित्य [३ मंग्रहानयों के घ्रतिरिक्त श्रनेक व्यवितियों के संग्रदों में हजारों हस्तलिसित ग्रन्थ संग होत हुए हैं । इन ग्रन्यों का सर्वेक्षण करने से प्रतीत होता हैं कि पिंगल के प्रनुपात में डिंगल की कृतियां कम नहीं हैं ।१ डिंगल का बहुत-कुछ प्राचीन सादित्य भ्रमी प्रकाश में नहीं ग्राया है ग्रौर वहुत-सा साहित्य ब्रमी तक कण्ठश्य है ।* १६ वीं सता- ब्दी के पू्व॑ का तो कितना ही बहुमूल्य साहित्य लुप्त हो चुका है । उसके पस्चात्‌ भी मौखिक परम्परा पर जीवित्त रटने वाते कितने टौ डिल गीत तया दोहे आ्रादि विस्मृति के गर्त में सो गए होंगे । इस स्पप्टीकरण के पश्चात्‌ हमारे विवेच्य विपय (डिगल गीत साहित्य) का प्रघ्ययन प्रस्तुत करने के पूर्व प्ृष्ठ-मूमि के रूप में यहाँ राजस्वानी साहित्य का. विहूं- गावलोकन करना वांछनीय है । (३) राजस्थानी साहित्य एक विहूंगावलोकन-- ग्रावुनिक भारतीय मापाओं के साहित्य में राजस्थानी साहित्य का श्रपना महत्व है । यह साहित्य गय तथा पथ के माध्यम से बहुत वड़े परिमाणं में लिखा या है । “नित्त परिमाण में यहाँ साहित्य-सृजन हुआ हे, उसका कुछ ही झ्रश प्रकाश में झ्राया है । अनगिनत हस्तलिखित ग्रथों में वह मुल्य सामग्री ज्ञात-म्रज्ञात स्वानों पर विखरी पड़ी है । काव्य, दर्यन, ज्योतिष, शालिहोत्र, संगीत, वेदान्त, वयक, गणित, शऊुन ग्रादि से सम्बन्धित मौलिक पग्रथों के अतिरिक्त कितने ही संस्कृत, प्राकृत, फारसी रादि के प्राचीन ग्रथों के अनुवाद व टीकाम्रों का निर्माण यहां हुमा है (3 विवेचन की सुविया के लिए उक्त साहित्य को हम निम्नलिखित वर्गों में विभक्त कर रहे हैं : (क) जेन साहित्य (ख) चारणं साहित्य (ग) सक्ति साहित्य (घ) लोक साहित्य (ड) अनूदित साहित्य (क) जन साहित्य-- जैन साहित्य प्राय: जैन यतियों तथा उनके श्रावकों द्वारा लिखा गया है अधिकांश साहित्य घामिक एवं उपदेशात्मक है । धर्म-गुरुंओों, घर्म-परायणु भक्तों (१) राजस्यानी सवद कोस (शरूमिका) सं ° सीताराम लालस, धृ ८७ (२) वही 1 (३) खजस्यानी सवद कोस (भूमिका): प° ८३




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