क्रोध समीक्षण | Krodh Samikshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्रोध-सपीक्षण समीक्षण च्यान की विधा इतनी विलक्षण एवं प्रभावोत्पादिका है कि रसकी विधिवत साघना से साधक की ्रन्तहण्टि जागृत होकर यथातथ्य अवलोकन में सक्षम वचन जाती है । वेसी अन्त ण्टि समभावना एव समदशिता के ग्राघार पर एक भर जड तत्त्वो की विभिन्न पर्यायों की भीतरी परतों को देख लेती है तो दूसरी ओर वह श्रात्मा की वृत्तियों तथा प्रवृत्तियों के रहस्यों का ग्रवलोकन भी कर लेत्ती है! वस्तुतः समीक्षण ध्यान का अभ्यास करने वाला साधक श्रात्महप्टा बन जाता है । उसकी हप्टि तब समीक्षण-दृष्टि हो जाती है 1 समीक्षण दृष्टि की शक्ति से हो यह ज्ञात किया जा सकता है कि मानव- जीवन के विकास को चरम लक्ष्य तक पहुँचा देने में कौन सी वृत्तिया अवरोध रूप है तथा उन श्रवरोधो को दूर करने मे किस प्रकार का पुरुपाथं सहायक हो सकेगा ? सिद्धात्मा श्रौर ससारी श्रात्मा के मूल स्वरूप मे कोई श्रन्तर नहीं है । श्रस्तर है तो केवल उस स्वरूप की श्रावत्तता का एव अनावत्तता का । ससारी श्रात्मात्रो के मूल स्वरूप पर कर्मावरण होता है श्रौर सिद्धात्मा पूर्ण रूप से श्रपने मूल तेजस्वी स्वरूप में निरावृत्त होती है। ये कर्मावरण आत्मा की स्वाभाविक शक्तियो को ग्राच्छादित किये रहते हैं, आत्मा की ही श्रपनी विपथ- गामिनी वृत्तियो एव प्रवृत्तियो के कारण विषय कपाय से भनुरजित होकर उसको वमी वृत्तियो एव प्रवृत्तियो के कुप्रभाव से श्रात्मा के मूल गुण दव जाते छिप जाते हैं श्रथवा विकृत रूप ले लेते हैं । प्रवाह रूप मे अनादि काल से ससारी आत्मा की यही स्थिति बनी हुई है । समीक्षण-ध्यानी भ्रपनी विशिष्ट विवेक शक्ति द्वारा शुद्ध एव श्रशुद्ध आत्म- स्वरूप का प्रथक्करण करता है। श्रौर अशुद्धता कै कारणभूत काषायिकः बृत्तियों को भी देखता है। श्री श्राचाराग सूत्र के तृतीय श्रघ्याय के चतुथं उद णक में कहा गया है-'से वत्ता कोह च माण च माय च लोभ च, एय पासगस्त दंसण उवरयसत्यस्स पलियतकरस्स, आयाण सगडत्मि । अर्यात्‌ कापायित वृत्तियो पपी लवसेयो को शास्त्रोक्त रीति से संयम का अनुप्ठान करके टूर कर पते हैं। यह उपदेश किसी सामान्य व्यक्ति का नहीं चल्कि उन सवेज्ञ तीथंव रो न है जिन्होंने रययं इन शस्य रुप शवरीघों को समीक्षण ध्यान द्वारा टूर किया नया अपने जास्तरिर् विचारों का समूल उन्मूलन करके मव-ज्मण का झस्त फिया




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