कावूर | Kavoor

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Kavoor by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

Read More About Haribhau Upadhyaya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
परिस्थिति । ७ ०५ चैठेगा, ख्व चुपचाप भाग निकला । उसके वहँसि दवे-छुपे निकल भागनेपर पुरोगामी और अनियन्त्रित सत्तावादियोंमिं लड़ाइयोँ छिड़ीं | उनमें पुरोगामियोंका पूरा पराजय हुआ । उनके नेताओंको अपने ग्रार्णोकी रक्षाके ठिएः देदान्तरगमन करना पड़ा । इटढीके अन्य प्ान्तोके सैनिकंकि द्वारा किये गये उपद्र भी अघ्टियाकी सहायतासे दान्त किये गये | तव फिरसे चारो तरफ अनियन्तरित शासनका उङ्ा पिठने खगा । इस प्रकार यद्यपि अधिकारी ओर सैनिक पुरोगामियोके राजनैतिक सुधार-विपयक प्रयत्न विफल हुए, तथापि उन सुधारोकी कल्पनाका वीज नष्ट न हा । ररचेकि संसर्गसे जोक-ग्वतन्त्रताका जो भाव इटलीमें उदय हुआ था उसकी जड वहत गहरी जा चुकी थी | उसका उन्मूलन होना प्रायः असम्भव था | वर्किये माव वहते सुशिक्षित समाजमें क्षपाटेसे फैल रहे थे । लेखन-स्वातन्न्यका यद्यपि अत्यन्त सङ्कोच हो गया था तथापि, उस विपरीत परिस्थितिमें भी, उनका सङ्गोपन हो ही रहा था | नेपोलियनके समयकी पीढ़ी-- उसके जमानेकी जनता--अव न रद्द गई थी । उसकी जगह नई पीढ़ीका उदय हो रहा था । नेपोलियन और आस्ट्रियाके द्वारा किया गया अपने देश - का घण्टाढार यह नव पीढ़ी देख चुकी थी और उसके हृदय पर इसका असर भी चुरा हुआ था । अतएव उसके हृदयमें यही चिन्ता--यही घुन-- दिनरात रहा करती थी कि यह दुर्दशा, यह विपन अवस्था कैसे दूर हो ? १८२०-२१ ईसवीके सैनिक पुरोगामी पक्षेके कान्ति- कारक प्रयत्न असफल होने पर इटरलीके अधिकांश राज्योंमें प्रतिगामी शासन-पद्धतिने वडा जोर पकड़ा | अतएव लोग खुछंमखुछा राज- नैतिक सुवारोंका आन्दोलन न कर पाते थे । चार होकर वे गुप्त मण्डलियेंकी स्थापना करके देदमें क्रान्तिकारक विचारोंका प्रचार करने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now