हिन्दी रंगमंच का उद्भव और विकास | Hindi Rangamanch Ka Udbhav Aur Vikas

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Hindi Rangamanch Ka Udbhav Aur Vikas by विश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कस्य ह (शेक क स्वरूप-निरूपरस “हता व्व की जुति -ुतपत्यथ क्ते श्नुसखार रुग -एक ग सज्ञा है । -यह्‌ शब्द सस्त के “च्ञ्य प्रहुजौ -ष्युतयत् पाता जाता है । घात्वय-बे प्नुतार रग शन्का पय षु (ष स्‌ (तति) + पत्र व्रा रड्ज (राग) +-प्रत पर्थात्‌ कितो ष्य पदाथ कां वह गु तो -उपषके छाङार-या स्मरसे भिघ्न-होता है प्रौर जिषका प्रनुमान केवत प्रार्वो न्होता है॥ वसा । ज़से ीमा,-पील़ा, लाल प्रद या हरा एग ।' रंग शब्त की म्युसत्ति रागा.न(मक धातु मे मी बबतलाई गयी है 1९ ष्टण शब करई मर्गो प्न प्रत्युक्त हुपा है जमे नत्य, गीत, मरभिनय स्वम, -पट-स्यल, वर्ण, यौवन परमाव, उ्रयापार, भरवस्या, क्रीडा उमग, प्रान-द, काण्ड, वृष्य, प्रसत्रतां एषा भुरा, दग चाल, तज, भाति, प्रकार, दशा, ल्ग, णोमा सोन्दयं भ्रादि13 *रग पका प्रय प्रखिनय.भो है । प्रभिनता,दो मय सब धो के साथ-साच रा भी कहा जाता है,।* सोकोक्तियों में गया है' का पथ मादकता से लिया जाता है । “रंग शददका मय 'क्रीडा-सेत्र तथ्य नाटकोय रगुमव दोनों के लिये भी प्रचलित दुत- लग्या गया है ।१ 1 मानक हिंदी कोश, (चौया घण्ड) सपुतक रामचद्ध वर्मा-पृष्ठ 453 ` ` 2. दिदी शब्द सागर (पॉचवाँ खण्ड) सपा” र्यामसु दरदास-पृष्ठ 2869 3 बद्दी, पृष्ठ । 2869 एवं 2871 थे रगमच-श्री सददानन्द पृष्ठ 37 5 स्त नाट तथा भ्रमितष मारतीय नाद्य सादिव्य, दा थी राघदन-पृष्ठ , 3




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