चांदी की रात | Chandi Ki Rat
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चांदी की रात | है २१
कि अभागिन नहीं; मैं सौभाग्यवती हूं । मुझे खोया प्यार मिछा है । में बहुत
खुश हूं । काया ! इस रात का सवेरा न हो और मैं ऐसी ही वावरी बनी रहूं!
कि
=
माघ का महीना आरम्भ होते ही वागों में कोयल बोल्ने लगी 1
फले चेत भौर फूल उठीं फुलवाड़ियाँ भी । भ्रमर गान करते ओर वहती वसंती
मस्त पवन । गांव की जवानी झूम-झूम उठती । कुमारी अपने में प्रसन्न थी ।
वह सावित्री को विमुख नहीं होने देती, स्नेह-भाव से उसे हाथों-हाथ लिये
रहती । सास को उठा कर पानी नहीं पीने देती और ससुर की सेवा इस भाव
से करती कि मानों वह उसके कुछ का पुज्य-देवता हो और भादि पुरुप । एक
दिन प्रात: जब वह पति को चाय देने गयी तो बैठ गयी एक कुर्सी पर और
ठुड्ढी पर हाथ रख धीरे-धीरे कहने लगी-“अब तुम्हारी तवियत अच्छी है ।
सावित्री बहन यहां हैं ही; अगर आज्ञा हो तो मैं मदन गाँव लौट जाऊं ।”
अनिल स्वस्थ हो चुका था । वह बैठा समाचार पत्र पढ़ रहा था ।
उसने भखवार पर से दृष्टि उठायी, पत्नी की ओर देखा फिर किचित युसकराहूट
के साथ सहज स्वर मरं बोला-“मदन गाँव, कितना प्यारा नाम है कुमारी ।
मैं ससुराल बहुत दिन से नहीं गया । चलो मैं भी घूम जाऊ 1”
यह मेरा सौभाग्य है । चलो कक ही सवेरे हम लोग यहाँ से
चछ दे 1
कुमारी के मुंह से यह सुन अनिल केटली से कप में चाय डालता
हुआ वोला-'“और फिर वहीं से सीधे लखनऊ चल देंगे । अब पुम मदन गाँव
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