समाज विज्ञान | Samaj Vigyan

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Samaj Vigyan  by चन्द्रराज भंडारी विशारद - Chandraraj Bhandari Visharad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४: विचार फढ़ कर औंक पढेंगें। पर हस विषम पर इभ अपने अस्येक पाठक से गम्मीरता पूवं विचार करने की अपील करते ह ! इस प्रथा कये अम्धि- वारी काजू ( 8८ 5146 ) पर अस्वन्त शान्ति के साथ विचार कर ेने के पथात्‌ ही इममे अपना निश्चय प्रकट किया है । हम जानते हैं कि इस पद्धति के प्रचक्छित होने पर पारिवारिक बन्धन बहुतः छ शिथिक हो अर्यिगे । खी गौर पुरुष के बीच ओ गहरा सम्बन्ध बना हुआ है, वह भी खीा हो जाथगा | मगर फिर भी हतनी हानियो के होने पर मी हम इस पद्धति की आावइयकता को अनुभव करते हैं । इस प्ति के अभाव में कितने ही प्रेम-मन्दिर, कलह-मन्दिर बने हुए हैं; कितने ही स्वगोगार भीषण नरक के नमूने षने हुए है; कितने ही महस्वा रक्षी नववुवक-- जिनके पास प्रतिभा है, जुद्धि है, घन है, दौलत है--अपने विरुद्ध स्यभा- वारम पत्नियों की वजह से अपने जीवन, उत्साह, ओर आनन्द को नष्ट करके नरक-यंत्रणा का अनुभव कर रहे हैं। इसी प्रकार कितनों ही योग्य 'पत्नियां -- जिनके प्रेस का कटोरा लबालब मरा हुआ है, जिनमें दया, सदा जुमूति और वात्सल्य प्रचर मात्रा मं है-नीच भौर श्चुद पतियों के साथ अपने उच्च-जीवन को बरबाद कर रही हैं । समाज का स्वास्थ्य नष्ट हो रहा है, शान्ति स्वप्नवत्‌ हो रही हैं, दुबल सम्तानें उत्पन्न होकर समाज़ का भार खड़ा रही है, मगर इसके प्रतिकार का कुछ उपाय नहीं है। यह स्थिति क्या समाज के छिए अमीष्ट कही जा सकती हे १ हम जानते हँ कि आदुक्ष विवाह-परणारी प्रचखित हो जाने पर ऐसी घटनाएं बहुत कम हो जायगी, संगर उन कम घटनाओं को दूर करने के लिये समाज में क्या व्यवस्था रहेगी ? इस प्रकार भद्दे तरीके से एक भी व्यक्ति के जीवन को नष्ट करने का समाज को क्‍या भधिकार है १ इस ब्याधि की चिकित्सा के छिए हमने ज़्यूबम रूप में, कुछ नियमों के साथ तलाक प्रथा को अंगीकार करने का समर्थन किया है + इस पर बम यह लिख देना आावर्यक समझते हैं कि मक अन्ध में इसने किसी विशिष्ट समाल को कदय में रख कर कोई योजना




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