राजपूताने का इतिहास भाग 1 | History Of Rajputana Vol I
लेखक :
महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha,
राय बहादुर - Rai Bahadur
राय बहादुर - Rai Bahadur
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
639
श्रेणी :
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महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha
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राय बहादुर - Rai Bahadur
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४५३
स्थापना हो चुकने पर इंप्यी और मत्सर ने अपना प्रभुत्व दिखाया और परस्पर
के कगड़ों से देश में रक्त की नदियां बहने लगीं । उसके शनंतर विदेशियों के
भराक्रमणों का प्रारंभ होता है। सर्वप्रथम इंरान के सप्नाद् दारा ने और उसके
धाद सिकेद्र एवं उत्तर के यूनानियों आदि ने इस देश पर अपना प्रभुत्य जमाना
खाद । बोद्धों और श्राह्मणों के धार्मिक संघ ने भी भारतवर्षं को हानि अवश्य
पहुंचाई । फिर मुसलमानों की इस देश पर कृपा हुई और चन्त म यहं
यूरोपीय जातियों का लीलाक्षेत्र बना । मुसलमानों के समय में तो प्राचीन
नगर, मन्दिर, मठ आदि घर्मस्थान, राजमद्दल और प्राचीन पुस्तकालय न
कर दिये गये, जिससे भारतीय इतिहास के अधिकांश साधन घिलुप्त दो
गये। इन सब घटनाओं से स्पष्ट है कि ऐसी अवस्था में इस देश का
्खलाबख इतिदास बना रहना श्नोर मिलना कठिन ही नही वरन् असम्भव
है।
खुप्रसिद्ध मुसलमान विद्धान् अबुरि्ां अलबेरूनी ने, जो ग्यारदर्यी शताब्दी
में कई वर्षों तक भारतवर्ष में रदकर संस्कृत पढ़ा और जिसने यष्ठां के भिन्न भिन्न
विषयों के भ्न्थों का अध्ययन किया था, श्रपनी पुस्तक तदकीके हिन्द मे लिखा
है कि, “दुभौम्य दै कि हिन्दू लोग घटनाश्चो के देतिदासिक क्रम की ओर ष्यान
नहं देते । वर्षानुक्रम से अपने राजाओं की वंशावलियां रखने में भी वे बड़े झ-
सावधान हैं ौर जब उनसे इस विषय में पूछा जाता है तो ठीक उतर न देकर
वे इधर उधर की बातें बनाने लगते है”; परन्तु इस कथन के साथ दी वह यदद
भी लिखता है कि “नगरकोट के किले में वद्दां के राजाओं की रेशम के पट पर
लिखी हुई वंशावली होने का सुभे पता लगा, परन्तु कईं कारणस मे उसे न देख
सका” * । इसलिये अलुबेरूनी के उपयुक्त कथन का यही अभिप्राय दो सकता
है कि साधारण लोगों में उस समय इतिहास का विशेष शान न दो; परन्तु
राजाओं तथा राज्याधिकारियों के यहां पेतिहासिक घटनाओं का विवरण अवश्य
ग्हता था । अलबेरूनी के उपयुक्त कथन से यदि कोई यद्द आशय समकते दो
कि हिन्दु आति मं इतिहास लिखने की रुचि न थी अथवा दिन्दुओं के लिखे दुए
(१) पड साथू, अलुबेरूनीज़ इंडिया; जि० २, ए० १०-११।
(९) वही; जिन र, हु 91 |
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