श्रीजैन सिध्दान्त भास्कर | The Jaina Antiquarty
लेखक :
ए. एन. उपाध्याय - A. N. Upadhyay,
के० भुजबली शास्त्री - K. Bhujwali Shastri,
श्रीयुत् बाबू कामता प्रसाद - Shriyut Babu Kamta Prasad,
हीरालाल - Heralal
के० भुजबली शास्त्री - K. Bhujwali Shastri,
श्रीयुत् बाबू कामता प्रसाद - Shriyut Babu Kamta Prasad,
हीरालाल - Heralal
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
538
श्रेणी :
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ए. एन. उपाध्याय - A. N. Upadhyay
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के० भुजबली शास्त्री - K. Bhujwali Shastri
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श्रीयुत् बाबू कामता प्रसाद - Shriyut Babu Kamta Prasad
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीघरसेन-कत 'विश्वलोचनकोश' का समय
( जेखक--भ्रीवबुत षी० ० गौड़ )
द
८१ ' ने प्राचीन पुस्तकों की झपनी सूची में 'विश्वलोचन कोश' के संबंध में
लिखा है:--'इस प्रंथ के कर्त्ता श्रीधरसेन थे । इसका उद्धरण शाक्सफोडे मे
वसैमान दस्तलिखित प्रति न॑ं० १३५ बी झौर १८५ बी में है। शायद (विश्वलोचनः श्र
(विदवप्रकाशः एक ही प्रथ है 1 पिटसैन ने अपनी सूची के माग ५ पृष्ठ १६२ मे लिखा
है-श्रीधर° एक कोशकार है। इसके पिता का नाम मुनिसेन था । सुन्दरगणी ने अपने
धातुरत्नाकर मे बहुधा इसके उद्धरण दिये है ।
साधु सुन्दरगणी ने १६२४ ३० भें धातुरल्लाकर की रचना की है। यदि श्रीथरसेन ही
“विद्वलाचनकोशः के रचयिता हों तो हम क सकते है कि यह १६२४ से पहले अवश्य
वत्तेमान थे।
श्नोक्सफोडं मे कालिदास के विक्रमोर्वशीय पर 'गनाथ की टीका की जा हस्तलिखित
्रति* रक्खी हु है उसमें विश्वलोचनः का जिक्र श्राया है, श्रोर अफ रट ने श्रोक्सफोडं में
रक्खी हुई प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों की जा सूची बनाई है, उसमें उन्होंने 'विदवलोचन'
श्र विश्वप्रकाशः को एक ही प्रंथ माना है । किन्तु अपने केटालोगस केटालोगोरमः* में
उन्होंने लिखा है कि यदद एक संभावनामात्र है ।%
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नैः “भविश्वलोचन कोश' ` से “विश्वप्रकाश” अतिरिक्त कोश प्रस्थ है। इसके रचनिता मदेश्वर
हैं। गह चौखम्बा संस्कृत सीरिज बनारस से प्रकाशित दुआ है । श्रीबुत पी० के० गौड़ जी ने भी
आगे इसको चचां की है ।
के० बौ* शाकी
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