चिक्क वीरराजेन्द्र | Chikk Veerrajendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्नाक्कधन रह एक देश होने झे राप-साप उमें रू दिन 1 “रदे रटने शेर रोरररि, दर कपदेरि उदयत्‌ उन्न हुरा । हरारे दूर स्नान के था जिददे डदेये दे भी दर्शन किये हों दोर उसो ने दंदा रो भी रेखा हो इनोः दिग्यन यद रदी बने धने, नोति सोर सस्कविरे सुरो के रुरप सेर्डों वर्षों ठे दर रही है, पर छिर भी राजनीतिक एर्ठा अभी हास को हो चोड है। हरप्रन्द ढा डीदन अपने-अपने ढेंय का था । हर पास्त में ऋरेक इशारे थे ये इसीलिए परेड प्रात्त का इतिहास भी शिसी देश के इतिटास के समंदर रिश्टुज या। इन ग्ट मः सवते च्छा उदाहरण है राडरदाव) स्मो शभेरर्‌ धमि भारव कषर छोटा-चा हिस्ता है पर उसके भी शीसियो भाप है ३ लेक रुप इतिट्राद एड रुष्ट्र के इतिहास के समान डिर्दूर थी है सौर इशोमर थी । शोरें, धमे, निष्ट, ठेब, वौरवा मौर घडा का उष भूमि में स्तिने सहज स्राशरिक सेदिक्राच टुआ है। साथ हो कुरोतियों, विनर, रंदाशेदरदा आर सोभ कर दिकंजा भो कितना विकट रहा है। यों 'इहुरला बुःभेत) बलो शटादस सत्य हैही परन्तु भारत-भूमि के सन्दभ में यह अशरपः शोक है। दिसो भो दान्त के इतिहास को उठाकर देखा जाये तो वह मोह री थौर यपोधदल भी है घोर सराप हो मागंदर्गन भो करता है 1 छोटे-से कोडग प्रान्त के इतिएासं भें भी थे पौनों वां डिदेद रूप से एरि० सप्तित होतों हूं । सह्यादि पद॑त धेणी भग्दई से पुर होकर दशिय को शोर पसरी है। रास्ते में पश्चिम समुद्र को ओर देपते हुए बहू निरम्तर षो रोसो यपो खतो है मर नीलगिरि में जा मिलती है। गीतगिरि में जा मिलने से पहले कोश्प प्रेत




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