साख्यदर्शन | Sakhyadarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) भनक पकवान: कः 9 क न ॐ ५6 (०५५०००५० ८० १५०५. क समज, 2 के कि, । ही की = = 9 (= ०० जी [१ के हल लक लग द न न ५ ति कारण ओर कारणं के अनुसार कार्य्यं | सित काः निश्चय करके उपमे अदेकरार के गुणो का अनुमान होताह। . किया जाता है अर्थात्‌ उसे अपना मानते हसी प्रकार यहां कार्स्य तत्व ओं को हैं जिससमय तक वस्तु की स्ति का देख कर कारण तन मात्रा का ज्ञान | निश्चयन हा तव तक उसमे अभिमान होजाता है । । नहीं होता है अर्थात्‌ में हूं और यह मेरा न दै यह ज्ञान जवतक अपने और चीज की स्तित्वका ज्ञाननहों किस तरह दोसकता है | | $ छ . हू | चाद्याभ्यन्तराभ्यां तैश्चा हंड्रा- | रस्य ॥६३॥ | (अर्थीवाहरकी ओर अभ्यन्तरीय इन्द्रियों | ततःप्रकृते ॥ ६५ ॥ से पच तनमात्रा रूप कार्य्य का ज्ञान | `. न _ , लेकर उसके कारण अकार का भी ज्ञान । (अथ) और उस मन सेमकृति जो मनक्रा | | | | | | | | | ] ग पि पिपयों | कारण हे उसका अ ] यों- होताहे क्योंकि स्पर्शीदि घिपयों का ज्ञान । है उसका न वन होता दे न ं | किं मन मध्यम परिमाण वाला हनिसे समाधि और सुर्पाप्त अवस्था में जब्रकि अहं- कार्य है और पलक कार्य का कारण काररूप दृत्तिका अभाव्र होता नहीं रेता | य {त हे जव मनका कारण भ क कर क ं 4 ९ ^ | ति इससे अनुमान होता है कि यह इस कति दे मातरि भोर कद्ध ह नही छृत्ति से उत्पन्न होते: हैं अर्थात अहंकार सक्ता क्योंकि ध तो धार 1 के कार्य्यं है ओर अहंकार इनका कारण । है और रस कीत मध्यम है क्योंकि यह नियम है कि जो जिसके वि- | _.. न खा ६ च ज ~ „ ¦ परिणाम बाय हीना श्रुतिस्मृति ओर ना पेदा न होसके वह उसका कारण है ! युक्ति से सिद्ध है क्योंकि मन सुख दुःख हैताहै ओर भृत विना अकार के सथप्षि। ~ - ~ र भी दे कि उति | ओर मोह धर्म्मवाखा है इसवास्ते उसका स्थाम दयत ऋ कते चष | कारण भी मोह धम्भवाखा दोना चाहिये यही उनका कारण अनुमान से प्रतीत ध | हर होता है। दुःख परतन्त्रता का नाम हे आरे पुरुष की परतन्तता दो नहीं सक्ती परतन्त्रता ते नान्तःकरणस्य ॥ ६९ ॥ केवल जड़ मक़ति का धर्म्म है और उस (अथ) ओर इस अहंकाररूप्री कार्य्य का कारस्य मन है । से उसके कारण अन्तःकरण का अनुमान | संहतपराथत्वात्‌ परुषस्य ॥ ६६॥। होता है क्योंकि प्रथम मनमें वस्तु की |. प्रकृति के अवयं की संहति सर्वदा नि




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