साख्यदर्शन | Sakhyadarshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कारण ओर कारणं के अनुसार कार्य्यं | सित काः निश्चय करके उपमे अदेकरार
के गुणो का अनुमान होताह। . किया जाता है अर्थात् उसे अपना मानते
हसी प्रकार यहां कार्स्य तत्व ओं को हैं जिससमय तक वस्तु की स्ति का
देख कर कारण तन मात्रा का ज्ञान | निश्चयन हा तव तक उसमे अभिमान
होजाता है । । नहीं होता है अर्थात् में हूं और यह मेरा
न दै यह ज्ञान जवतक अपने और चीज की
स्तित्वका ज्ञाननहों किस तरह दोसकता है
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चाद्याभ्यन्तराभ्यां तैश्चा हंड्रा-
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रस्य ॥६३॥ |
(अर्थीवाहरकी ओर अभ्यन्तरीय इन्द्रियों | ततःप्रकृते ॥ ६५ ॥
से पच तनमात्रा रूप कार्य्य का ज्ञान | `. न _ ,
लेकर उसके कारण अकार का भी ज्ञान । (अथ) और उस मन सेमकृति जो मनक्रा
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होताहे क्योंकि स्पर्शीदि घिपयों का ज्ञान । है उसका न वन होता दे न ं
| किं मन मध्यम परिमाण वाला हनिसे
समाधि और सुर्पाप्त अवस्था में जब्रकि अहं- कार्य है और पलक कार्य का कारण
काररूप दृत्तिका अभाव्र होता नहीं रेता | य {त हे जव मनका कारण भ
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इससे अनुमान होता है कि यह इस कति दे मातरि भोर कद्ध ह नही
छृत्ति से उत्पन्न होते: हैं अर्थात अहंकार सक्ता क्योंकि ध तो धार 1
के कार्य्यं है ओर अहंकार इनका कारण । है और रस कीत मध्यम
है क्योंकि यह नियम है कि जो जिसके वि- | _.. न खा ६ च ज
~ „ ¦ परिणाम बाय हीना श्रुतिस्मृति ओर
ना पेदा न होसके वह उसका कारण है ! युक्ति से सिद्ध है क्योंकि मन सुख दुःख
हैताहै ओर भृत विना अकार के सथप्षि। ~ - ~
र भी दे कि उति | ओर मोह धर्म्मवाखा है इसवास्ते उसका
स्थाम दयत ऋ कते चष | कारण भी मोह धम्भवाखा दोना चाहिये
यही उनका कारण अनुमान से प्रतीत ध | हर
होता है। दुःख परतन्त्रता का नाम हे आरे पुरुष
की परतन्तता दो नहीं सक्ती परतन्त्रता
ते नान्तःकरणस्य ॥ ६९ ॥ केवल जड़ मक़ति का धर्म्म है और उस
(अथ) ओर इस अहंकाररूप्री कार्य्य का कारस्य मन है ।
से उसके कारण अन्तःकरण का अनुमान | संहतपराथत्वात् परुषस्य ॥ ६६॥।
होता है क्योंकि प्रथम मनमें वस्तु की |. प्रकृति के अवयं की संहति सर्वदा
नि
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