अभिधान - अनुशीलन | Abhidhan -Anushilan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
58 MB
कुल पष्ठ :
515
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विद्याभूषण विभु - Vidhyabhushan Vibhu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के उदाहरण से यह बात श्रधिक स्पष्ट हो जायगी। च्रंगद नाम क श्ररात मूलेदट्व शिबिद्धीचि
के सदहश कोई श्रात्मयाजी [श्रंग (देह) + दा] श्रथवा देहावतंस रंग ~+दै-श्रग को विभूषित
करनेबाला बाजूबन्द, केयूर) रहा होगा } तदुप श्रनेक श्रप्रस्दि अंगद नामधारी हुए होंगे | इस
नाम ॐ निरन्तर प्रचलित रहने से य ज्ञात होता है कि वह श्रभी श्रप्रयोगावस्था को नहददीं पहुँचा ।
्ेतायुग मेँ प्रसिद्ध श्रंगद नामक बालिश्रौरताराका पुत्र हृश्रा) वह राम हनुमान श्रादि का खम-
कालीन तथा सहयोगी था । उसने रामदूत बन कर रावण की सभा में श्रंगद नाम का श्रातंक जमा
दिया । राम-रावण-युद्ध में भी उरुने पर्याप्त पराक्रम दिखलाया । उस नाम से प्रभावित होकर उसके
झनुकरण पर अनेक छोटे-छोटे अन्य श्रंगद् भीदह्ुए होगे जिनका कोह इतिद्त्त विदित नहीं है ।
इसके पश्चात् उर्मिला श्रौर लक्ष्मण के पुत्र झंगद का नाम मिलता है । द्वापर में भी झंगद नाम का
उल्लेख मिलता है । चित्रांगद श्रौर रक््मांगद् (स्वणं केयूर) नाम से कुछ व्यक्ति अवश्य परिचित
होंगे । बीच की कड़ियों का कुछ पता नहीं चलता । पक दी युग के बाद सिवखो के दूसरे गुर
लहना श्रंगदनाम से इतिहासप्रसिद्धि हुए । क्योंकि उन्होंने श्पने गुरु नानक की सेवा में श्रपने झंग
(देह) की कुछ चिन्ता नहीं की । गुर ने भी उनको श्पना अंग ही समका श्र प्रसन्न होकर उनका
सार्थक नाम अंगद रखा । स्वामी दयानन्द से शास्त्रार्थं करने के कारण ईप्रह्लन्धकीतिं श्रंगदराम
शास्त्री हुए । स्वनामघन्य अंगद गुरु के श्रनुकरण पर सिक्खों में श्राजकल सेकडों श्रंगदसिंह दिखलाई
दे रहे हैं। हिन्दुश्रों में मी अंगदों की कमी नहीं है । सिंह श्रौर राम गौण शब्द समाज के प्रभाव के
कारण संलग्न हैं । प्रयोगावस्था से श्रप्रयोगावस्था तक नाम श्रपने सुददीघं जीवन में कभी तो महान् `
व्यक्तियों के सम्पर्क से प्रकाश में श्रा जाता दे और कमी पांडवों के सदश श्रज्ञातवास में रहता है ।
इस जीवन में देश, काल तथा समाज के विभिन्नत्व के कारण वह नाना व्यक्तियों के साथ नये नये
खेल खेलता है । कमी चोला बदलता है तो कभी श्रत्मा र्थ) श्रौर कभी-कभी दोनों दी।
छ्रप्रयोगावस्था तक पहुँचने में न जाने कितना समय लगे । इसलिए श्रपूण' जीवन का 'इतिहास भी
श्रमी झपूण' ही है । उपकरणों का झ्रभाव, नाम के जीवन की श्रपूर्णता एवं ऐतिहासिक श्रुपादेयता
के कारण इष प्रकार का श्रध्ययन कोई विशेषता नहीं रखता ।
शाब्दी इतिहास के भी दो रूप हो सकते हूँ--(शर) व्याकरण सम्बंधी--इसमें नाम के प्रकृति,
प्रत्यय, संज्ञा, लिंग, बचन श्रादि का परिचय दिया जाता है! इसका वतमान विषय से को विशेष
सम्बंध नहीं है । इसलिए भूमिका मे उ पर बहुत थोड़ा ही विचार किया गया हैं । (ग्रा) ध्वनि-
विज्ञान सम्बंधी--इसमें नामों की ध्वनियों के क्रमिक विकास की मुख्य-सुख्य विक्ञतावस्थाओं का
उल्लेख रहता है । अंगद नाम में कोई रूपान्तर नहीं हृश्रा, श्रमी बह श्रविकसितावस्थामेदह्ी है)
इसलिए इस प्रकार का उसका कोई श्रपना इतिहाख नहीं हो सकता ! चौडा चामुंडराय का विकसिंस
का
+ देखिए सिह शब्द् का इतिहास (प° ४७६)
२ सामान्यतः विकार तथां विकास को एक दूसरे के पर्याय रूप में अयुक्त किया गया
है । अंतर केवल इतना दी है कि मूल शब्द का विकसित रूप (तद्भव) किसी भाषा का स्थायी रूप
होता है | यह एक प्रकार का रूपान्तर है । विकृति में भाषण सेद॒ के कारण अनेक स्थानिक,
स्थायी परिवतन होते रहते हँ । भाषा सम्बन्धी विकार को विकास कह सकते है जो ऊद सिद्धान्तो
फ अनसार स्थायी होता है । भाषण सम्बन्धी उच्चारण भेद केवल विकार दी कहलायेंगे । जब को ह
यरुप निवासी शतानंद को सटानडा (6212262), आत त्राण को ्ारद्रान (41६ (27) यां
लरफुरला कों व्ुटपुल्ता (1,८४ ८५112) कहता है तो ये माषण-ध्वनि के दिकार हैं न कि माषा फे
विकसित रुप ।
[नी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...