भारतीय अर्थशास्त्र | Bharateey Arthashastra

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Bharateey Arthashastra by केवल कृष्ण ड्युवेत - Keval Krishna Dyuvet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९२ भारतीय अथंशास्त्र की पट्टी में ही २,८३,२०,००,००० टन कच्चा लोहा होने का अनुमान किया जाता है, जो भारतीय निर्माताओं की एक सहल वर्षं तक की आवश्यकताओं कौ पुति करने योग्य हं । ” इन कोयला खानों कौ निकटता इनके भंडार को ओर भौ अधिक बहुमूल्य बनाती है । कच्चा लोहा सिंहभूम, केओन्ज्ञर, मयू रभंज, वंगा, मध्यप्रदेश, मंसूर तथा हिमालय में मिलता है । औसत वार्षिक उत्पादन लगभग तीन लाख टन है । किन्तु यहु फंस का लगभग दसवां अंश तथा अमरीका का पचासर्वा अंश हं । मेगेनीज--किसी देश के पास निर्माण-योग्य धातुओं के अतिरिक्त ऐसी मिलावट करने योग्य धातुएं भी होनी चाहियें जिनका उपयोग फौलाद के औजारों, बन्दूकों, कवच की चादरों आदि को बनाते समय उनको कठोर बनाने मे किया जा सके । मेंगेनीज का सम्बन्ध इसी वर्ग की धातुओं से है। इन कठोर बनाने वाली धातुओं के पर्याप्त भंडार के बिना एक देश शांति तथा युद्ध दोनों ही काल में अत्यधिक असुविधा में रहता हौ । मेगेनीज एक अत्यधिक उपयोगी सामग्री ह ओर सभी व्यापासें मे हुरफन मौला कहलाता है। इसकी आवदयकता सीनाकारी, चीनी मिट्टी के बर्तनों, रासायनिकों, म॒तिकला, वानि, शीशे कौ तरह चमकते हुए बर्तनों, सुखी बैटरियों (1)“‡ -3816- 7168) और सभी कार्यों में पड़ती है । किन्तु इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता फौलाद उद्योग है। हमारे फौलाद उद्योग के पूर्णतया विकसित न होने के कारण भारत में उत्पन्न अधिकांदा मेंगेनीज का निर्यात कर दिया जाता हैं । मेंगेनीज के विषय में भारत रूस के बाद संसार में सबसे बड़ा उत्पादक है । १९५० में कुछ उत्पादन ६,४६,००० टन था । भारतीय लोहा तथा फैलाद उद्योग इसमें से एक वर्ष में कुछ ६०,००० टन खपा पाता है । नागपुर, बालाघाट, भंडारा और छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश के जिले, बम्बई राज्य के कुछ भाग, मैसूर मद्रास राज्य, बिहार और उड़ीसा इसके उत्पन्न होने के मुख्य स्थान हे | सोना--सोना भारत भर में पाया जाता हैं, यद्यपि सभी जगह यह अत्यन्त कम वरनू नगण्य परिमाण में मिलता हैं । इसको नदी के बालू को घोकर प्राप्त किया जाता है । किन्तु मैसूर की कोरर के स्वर्ण क्षेत्र इसके एकमात्र महत्वपूर्ण सावन हैं। कोलर के अतिरिक्त सोना हैदराबाद (दक्षिण) के हुट्टी में दस लाख स्टलिंग का मिलता हे । मद्रास के अनन्तपुर में ७॥। लाख स्टिंग का मिलता है । किन्तु यह बहुत कम उत्पादक है। १९५२ में २,४३,००० औआँस शुद्ध सोना उत्पन्न क्रिया गया | अश्क--भारत कच्चे अभ्यक के उत्पादन में संसार भर का नेता है । अभ्यक के भंडार अजमेर, ट्रावनकोर, मैसूर और बिहार के हजारीबाग जिले में हैं । हजारीबाग में भारत भर के उत्पादन का ८० प्रतिशत अभ्यक उत्पन्न होता हैं । यह मद्रास के सेल्लोर जिले में भी सिलता हैं । बिजली के सामान बनाने में अभ्यक अत्यधिक उपयोगी होता है । भारतीय अभ्यक पृथकत्वकारी विद्युत्सामग्री के निर्माण में विशेष रूप से उपयोगी होता है। अभ्यक का उपयोग दीवार पर लगाने के कागज के उद्योग, रोगनों के निर्माण रेडियो में तथा विमानों में भी किया जाता है*। काले अशभ्वक का उपयोग चह्टे, स्टोव (3६0४७ ) और भट्टी, खिड़कियों, गैस के लैम्पों और चिमनियों, लैम्प के छायाकारकों . (80801९8) तथा गैस नकाबों आदि में किया जाता है । भारत के पास अभ्थक के विषय में संसार का एकाधिकार है । वह विद्वं भर के उत्पादन का ७५ प्रतिशत उत्पादन करता हैं. और उसका, रगभग सारा-का-सारा विदेशों को निर्यात कर दिया जाता हू । १९५० म भारत मे कुछ २,५१,७६२ हुंडरवेट अभ्यक निकाला गया । क्रोमाइट--क्रोमाइट का भंडार भारत को प्रकृति ने बहुत कम दिया है । यह युद्ध के उद्यो के लिये एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धातु है। और गत युद्ध तक इसका प्रयोग




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