जीवन स्मृति | Jeevan Smrati

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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श्री सूरजमल जैन - Shri Surajmal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कद -दपसाफनसा दा नर: देकनकनका, स्तर पन्ना उ ४ न कुक ा न 3 हनन पीर न नि स्क हू दि ् ग ू ही डर न न पक ढ़ मद जी २५.८1 | [ 2... ८. की... न दा या ठग है गए सकल जम न का दा 25225 “् दे अनूद , . ८522 3: रद सलाम यु न “४25: 2 2 ,:5525:22 2: ्ि दि कर दया न न कनस! व टन, पक हमे ही लि जे म् कक पक 'ए् सर दो के रु सार 2 सनम £25:557::2८25552घ2:5: 25555 था पेंसिछ के द्वारा ' केढास” नाम लिखा गंया । तंब कैठास से पूछा गया 'कि' परढछोक का जीवन-क्रमे किसं प्रकार का है ! प्लन्चेट की पेंसिढ ने उत्तर लिखा कि “ में तुम्हें विलकुछ नहीं चतीऊंगा । . भला, जिसे जानने के छियें मुझे स्वतः मंरना पड़ा बेह में तुमको मुफ्त केसे बतला सकता हूं ?”' मुझे प्रसन्न करने के छिये केठास एक हछके दर्जे का गाना ज़ोर जोर से गाया . करता था । यह गाना उसी _ बनाया था । इस कथबिता का नायक मैं था और नायिका के . आगमन का आशा बडी सन्दरता से प्रगट की . गई थी | कॉवेता मे उत नायिका का सोहक चित्र भी खींचा गया था | भविष्यकाल के देदीप्यसान सिंहासन पर विराजमान होकर उंस सिंहासन को सुशोभितत करने वाढी उस जगन्मोहिनी कुमारी का वर्णन सुनकर मेरा चित्त उस ओर आकर्षित हो या करता था । उसमें नायिका के लिर से पेर तक के रत्न- खचित आमभूषणा की आर मरें विवाहोत्सव की तैयारी की अपूव शोभा की जो वणन था उससे मेरी अपेक्षा, अधिक वय वाले चतुर मनुष्य को मस्तिष्क भी घूम सकता था; परन्तु मेरे बालचित के आकर्षित होने और . अन्तरचक्ष॒ के संन्मुख आनन्द जनक चित्रों के घूमने का “कारण . केवठ उस कबिता के यमंकों का मंघुर नाद और उसके ताछ.का आन्दो- नहीं था । काव्यानन्द के यह दो प्रसंग और “ पानी रिमझिम रिमझिम पडता है, नदी में पूर आता है ” इस प्रकार रद मल्वकन रस, जून रन दर ह हे न नर * लवण बाय है 20 उन कप




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