जिन्दगी के थपेड़े | Jindagi Ke Thapede
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दफ्तर में | [ £
“योर कया त्रे } उने बडे वाचू से मेरी शिकायत की, लेकिन यनै
तो कह दिया कि मेरा दिमास ठीक नहीं हो सकता ।. वह द्मपसै कां समता
क्या है ?”'
“चिशक--एक बाबू ने कहा |
'“र तुमतै सुना ? उसने साहम के पास जाकर श्रपनी सदानार पत्रिका
में कितने अच्छे रिमाक लिये ।. शानदार 1
खर्जाची ने श्रचकचा कर पूछा चिह स्रा के पास गया
था ? | |
पाया ही होगा |. नहीं तो क्या साह इतना भला मानस हैं कि उस
जेसे श्रादमी के लिये लिखे “शानदार” काम १?
धटो सकता है--~- उसके साथी ने टिप्पणी की |
जनाव श्रव सुपस बातें वहींकसते है। काम होता दै तो परा
लिखकर मेजते हैं जेसें ये ही साहब हैं } `
उसका साथी बीच ही में बोल उठा. इसीलिये छोटे बाबू को रुकना
पड़ '^तुप्र जब श्रादमी को कुत्ते की तरह फशिड़कतें हो तो बह क्या करे १?”
# छठे बाबू फिर कुछ कहते कि चपरसी से एक प्ररत
लाकर दिया श्रीर् ३ कान्त वादू नै यह कितान जल्दी मरगी ह ^
छोटे बाबु श्रन्द्रदी श्रन्दरं जल रहे थे । पर्छ देख कर् दाग
नन्रूला द्य गये) परने को सुठी में ससोव कर परे फेंक दिया शरीर कहा
जाती, कह दो मेरे पास पर्चा भेजने की जरूरत नदीं | ।
चपरासी हँस पद्ध श्रौर परना उठा केर उसने कान्ते बाघूकोजा करदे
दिया कान्त बाबू क्रोध से पागल हो उठा । . उसके. नथनले फड़केने लगे 14
उने उसी चिर पर लिखाः-~ ` (म भयु श व्क म
` श्छुरे्राबू |
तुम्हारे पास च्द्मी जाताःहैतो तुप कुत्ते की तर सिक्ते दो |
परना लिखते हैं दो तुम बिगड़ते हो । श्राछिर् तम चाहते क्या ले ९ सर्कार
“ विष्णु हर
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