जिन्दगी के थपेड़े | Jindagi Ke Thapede

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Jindagi Ke Thapede by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दफ्तर में | [ £ “योर कया त्रे } उने बडे वाचू से मेरी शिकायत की, लेकिन यनै तो कह दिया कि मेरा दिमास ठीक नहीं हो सकता ।. वह द्मपसै कां समता क्या है ?”' “चिशक--एक बाबू ने कहा | '“र तुमतै सुना ? उसने साहम के पास जाकर श्रपनी सदानार पत्रिका में कितने अच्छे रिमाक लिये ।. शानदार 1 खर्जाची ने श्रचकचा कर पूछा चिह स्रा के पास गया था ? | | पाया ही होगा |. नहीं तो क्या साह इतना भला मानस हैं कि उस जेसे श्रादमी के लिये लिखे “शानदार” काम १? धटो सकता है--~- उसके साथी ने टिप्पणी की | जनाव श्रव सुपस बातें वहींकसते है। काम होता दै तो परा लिखकर मेजते हैं जेसें ये ही साहब हैं } ` उसका साथी बीच ही में बोल उठा. इसीलिये छोटे बाबू को रुकना पड़ '^तुप्र जब श्रादमी को कुत्ते की तरह फशिड़कतें हो तो बह क्या करे १?” # छठे बाबू फिर कुछ कहते कि चपरसी से एक प्ररत लाकर दिया श्रीर्‌ ३ कान्त वादू नै यह कितान जल्दी मरगी ह ^ छोटे बाबु श्रन्द्रदी श्रन्दरं जल रहे थे । पर्छ देख कर्‌ दाग नन्रूला द्य गये) परने को सुठी में ससोव कर परे फेंक दिया शरीर कहा जाती, कह दो मेरे पास पर्चा भेजने की जरूरत नदीं | । चपरासी हँस पद्ध श्रौर परना उठा केर उसने कान्ते बाघूकोजा करदे दिया कान्त बाबू क्रोध से पागल हो उठा । . उसके. नथनले फड़केने लगे 14 उने उसी चिर पर लिखाः-~ ` (म भयु श व्क म ` श्छुरे्राबू | तुम्हारे पास च्द्मी जाताःहैतो तुप कुत्ते की तर सिक्ते दो | परना लिखते हैं दो तुम बिगड़ते हो । श्राछिर्‌ तम चाहते क्या ले ९ सर्कार “ विष्णु हर




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