श्री देवाराधना संग्रह | Shri Devaradhana Sangrah
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ -तंप कऋटयाणक
श्रमजल रहित शरीर, सदा सब मसल रहिउ ।
छीर वरन-वर रुधिर-प्रथम श्राकृति लहिउ ॥
प्रथम सार सहनन, सुरूप विराज ।
सह॒ सूगन्ध सुलच्छन मडित ` छाजही ॥
छाजहि श्रतुलबल परम प्रिय हित, मधुरं बचन सुहावने।
दस सहज श्रतिशय सभग मूरति, बाललील कहावने ।
प्रावाल काल त्रिलोक पति जिन रचित उचित जु नित्त नए ।
श्रमरोपूनीत पुनीत श्रनुपम, सकल भोग विभोगए ॥११॥
भवतन भोग विरक्त, कदाचित चित्तए।
धन यौवन पिय पृक्त, कलत्त श्रनित्तये ॥
कोउ नहि शरन मरन दिन, दुख चहुँगति भरयों ।
सुख दुख.एकहि भोगतः, जिय विधिवश परयो ॥
परयो विधिवश् स्नान चेतस, श्रान जडजु कलेवरो ।
तन श्रशुवि परते होय श्राख्त्र, परिहरत सवयो ॥
निरजरा तपबल होय, समकित, बिन सदा त्रिभ्रुवन म्यो ।
दुर्लभ विवेक चिना न कब्रहुं प्रम घरम विषे रम्यो ॥१२
ये प्रभु तरह पावन, भावन भाद्धा।
लौकातिक वर्देव, नियोगी श्राइया ॥
कूमुमाजलि दे चरन कमल सिर नाइया ।
स्वयंबुद्धि प्रश्न थुतिकरि तिन समुक्राइया ॥।
ससु खाय प्रभ्नुको गये निजपुर, पुनि महोच्छव हरि कियो
रुचिरुचिरचित्र विचित्र सिविका, कर सुनन्दन बन लियो।)
ठहूं पचमुष्टी .लोच ' कीनों, प्रथम सिद्धनि थुति करी।
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