समाज का अत्याचार | Samaj Ka Atyachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समाज का अत्याचार ३१
लिये तैयार हो रही थीं ।----ुउउस ओर के दृश्यों पर
कस्मात उस के देखते देखते एक काला पदां पड़ गया।
सदसा समन की ओर उस की दृष्टि गई । रमन उसके सुख की
तर 'ध्यान से देख रहा था । विजली ने आंखे नीची करलीं ।
और देशो पर शांचल डाल लिया ।
रमन ने कदा--- “मै कव जाङ'गा 1
--“कहां जाओगे ? तुस्हारे माता-पिता कहां रहते
हैं । उन्हें खुचना देनी होगी । इन दिनो में तो इतनी बड़ी बात
की झोर ध्यान तक नहीं गया । तुर्हारे माता-पिता कहां
रहते हैं । में झभी आदमी भेज दू ।”
मेरे माता-पिता जीवित नहीं हैं । में एक अनाथ
बालक हू | <
-ण“तो और कौन है ? बताओ ।”
“मेरा और कोई सो नहीं” । इस खंसार
में ऐसा कोई मजुष्य नहीं जिसे मे अपना समझू ” ।
--““कहा रहतेथे।ः
“क्या वत्ता ? आज तीन दिन हये इस
शहर मे आया था | मेख घर गाओ सें है ।”
------ “यहां केसे आये ? ओर उस दुकान पर
तुम्दारा क्या काम था ।यद्द बताओ तो ?
रमन कुछ देर तक चुप पड़ा रहा उस के सुख से कोई
बात न निकली । बिजली उसी ओर दृष्टि जमाये रमन
को धयान से देखती रही-----इस खुन्दर और भोले
चेहरे पर दुर्भाग्य ने कसी गहरी काल रुकीर खच दी हे।
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