श्रीकृष्ण चरित्र | Shrikrishna Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 ० ष्की ॥ ( -११९ घ्म ने इन्हें उनके प्रमाण पर सच्चा मान लिया है श्रतएव प्रथम यह श्रतुसन्धान करना उचित होगा कि ˆ इन पुराणों 7 को ऐतिहासिक योरव कहां तक प्राप्त हो सकता है या उनके लेख कहाँ तक विश्वसनीय श्रोर माननीय हैं | , .( झ ) प्राचीन 'झायंजाति ऐतिहासिक विद्या से अनजिज्ञ न थी । परन्तु च्तमान पुराणों की कथाश्रों की सत्यता के चिपय में श्रपनी सम्मति स्पष्ट रूप से प्रकट करने के पूर्व हम यह कह देना श्राव्य समभते हैं कि हम चह सार्वजनीन चिचार मान्य नहीं हैं जिसके श्रछुसार यह कह दिया जाता हे कि प्राचीन श्रायं लोग-जिनके नास के साथ चतंमान सभ्यता श्रौर दर्शन शास्र सम्बद्ध है, जिनकी चिदया श्रौर कला फे प्रकाश से श्रव मी संस्कत साहित्य फे पन्ने पन्ने रगे है-जिनकी प्रतिभा उनके वनाये हुये त्रन्थो से श्राद्शं के समान संसार आलोकित फर रदी हे--ऐतिहासिक ज्ञान से नितान्त प्रनभिन्न थे । श्रौर उनमें न इतिहास पढ़ने की रुचि थी श्रौर न लिखने की परिपाटी थी । वास्तवमे वर्तमान संस्छत साहित्य को देख कर हम यदद तो कह सकते हैं कि प्राचीन श्रायंगण श्रमुक ९ विद्या श्रौर शाल मे निपुण थे पर मिर्टाय के साथ यह नर्ही कहं सकते कि ये उनके श्रतिसिति श्रमुक् चिदा से सवथा श्नः भङ्ग थ ।'प्राचीन झार्यसभ्यता को इतना समय व्यतीत हो




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