कालिदास के गीति काव्यों का कथ्य एवं शिल्प | Kalidas Ke Geeti Kavyon Ka Kathya Avam Shilpa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 को मात्र कृत्रिम उपकरणों से संतुष्ट नही. मिलती । वह भ्वी प्रकृति के मुक्त प्रांगण में देर सब्रेर पयेटन मै लिग्रे उत्कण्ठित हो जता है । इतना गरा सामीप्य है । जन-जीवन के सय प्रति के. कालिदास क कवि प्रकृति का सच्चा ओर्‌ भावुक सहचर है । उस्ने अपने गीति काव्यों में प्रकृति का जौसा हृदय हरी ।च्त्रप प्रस्तुत कया है । वह प्रकृति का सच्या सहचर ही कर सकता है । प्रकृति का साहच्ये कवि जीवन का एके पक्ष है ओर प्रकृति के सुन्दर रूपों की आच्छायाओं का कावे मानस में सभा जाना दूसरा पक्ष है । यह तभी संभव होता है । जेब मनुष्य को एक संवेदनशील मन प्राप्त होता है । यह संवेदनशीलता सभी मनुष्यों में एक समान नहीं होती । पसर होता तो सभी | कोवेंगण कालेदास या वडुस्वथ हो जाते । प्रकृति की रूपराशे तो हम सभी के लिए समान रूप से उजागर है परन्तु हम लोग तो ऋतुसंहार और मेघदरत जैसे गीत नहीं लिख दे ते ।. ऐसा क्यो? .. क्यों क हमारी संवेदनाएं उतनी भावप्रवल नहीं है जितनी [के वे कालेदास जेसे कांवेयों की होती है । हिन्दी के कावि निहारी का कथन हे : रूप रिझावनहार यह वे नेना रिझवार । यह रूप मोहने वाला हे तो वे आँखे भी तो रीझ जाने वाली है । बस यही बात है, हमरे महन्‌ गीतकार कालिदास को प्रकृति के रूप सोन्दये पर रीझ जाने वाली आँखे मिली थी ।. उसने प्रकृति के रूप सौन्दये को छककर पिया और अपने गीतों को धुन में उसके चित्रों को उतार दिया ।. उसकी गीत माधुरी हमारे मन का मात्र प्रसाद ही नहीं करती जैसा [के आज कल के बहुत से सत्ते गीतां से होता है । वह हमारे सौन्दये संस्कारों का परेष्कार श्री करती है ।. यहीं उसके गीति सॉन्दये का सबसे बड़ा जादू है ।. हमारे इस अध्ययन का मुख्य योगदान कालिदास के गीतों के इस जादू कथ्य और शिल्प दोनों ही बिन्दुओं पर समझने का मागे पर्त करना ह । कालिदास तया उसकी प्रोढ़ कृतियों को लेकर एक से एक अनूढे अध्ययन सम्पन्न कए ज चुके है । इस दिशा मेँ न केवल आधुनेक भारतीय भनीषी आगे बढ़े हैं बल्क पूवे तथा पश्चिम के अनेक




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