मूत्र रोग चिकित्सा | Mutra Rog Chikitsa
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32.9 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कुछ विष्वाव मूत्र रोग की गणना यद्यपि एक बहुत
साधारण रोग में करते ई थौर विभिन्न रुप में इससे सम्च-
न्घित रोगों का वर्गन सिलदा है किन्तु दास्तव में वदि देखा
जाय तो सह भी एक वहुत भय दूर सूनरोगाधिकार हैं और
जो १ ७ समें चताये हैं, “उनमें है मर्मों की प्रधानता
उनमें वस्ति मर्म, हदय मम, शिरःम में प्रधान माने गये हैं।
अत' थाचायों ने तीनों मर्मों की रक्षा का विशेष उल्लेख
किया है ।
हुप्ये मूध्नि वस्तौच नुर्णों ज्राणाः प्रत्तिष्ठिता: ।
तन्मात्तेपां सदा यत्न॑कुर्दीत परिपालने ॥।
नमें फी ब्युत्पत्ति से भी ज्ञात होता है कि घन तीनों
मर्नों में किसी भी प्रकार से पघषि जाघात द्ोजाय तो प्राण
नप्ट होजाते हूं । किक
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रयन्दीति मर्माणि झथ्वा मरण कारित्वात् म
इसकी सिड़िसूघातु से मनिन घत्यय करने पर होती है
शिंगते सन् झात मम जपातु जिस पर आयात लगें ने से
मृत्यु हो जाती हू । गर्म स्थान में होने वाले रोग लसाध्य
होते हैं यथा “भर्माण्यधिप्ठाये दिये विकाराः सुर्छेन्तिकाये
चिधिवा: नराणां । प्रायेण ते
रोप साध्यसाना सुतिये उपरोक्त प्रमाणों से जि प्को
जाय्तोपदेघ माना जाता है 1
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कृच्छतमा भवन्ति नरस्य यतने-
मून् सम्दन्धि - जितने भी
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नायुर्वेद संस्थान दे अध्यक्ष हैं । वापके इस लेख-प्रसाद पर झुम आभार रो हैं!
मनुभ्रूत योग सहित प्रस्तुत लेख पटनीय एवं मननीय है !
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साथ ही आप्तोपदेश को आधारशुतसिद्धान्त माना. है
वस्तिमर्म से सम्बन्धित सुत्ररोगों की जो गणना हैं
उसमें गम्भीरता से विचार करना चाहिये। चरक ने
नानात्मज, सामान्यज रोगों कौ परिभाषा .म॑ जहां
मुद रोग वहाँ सामान्यजाः रोगों की परिभापा में थाति है ।
चहाँ सुच् स्थान में अप्टी सुब्ाघाता: और चिकित्सा के
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नध्याय में इसका मुन्नकुच्छ के रूप में
उल्लेख है । तर
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व्यायाम तीक्ष्णीपघ रुक्षमद्य प्रसंग नित्यदतपष्टयानात् !
आानूप मर्त्याध्य शनादजीर्णा
स्युप्ु चकुच्छाप
। पूबडमला: रदे:ऊुपिताः
-... . 7... निदाने: स्ध्यवाकोपमुपेत्प बस्ती
सुन्न स्यमान परियीडयन्ति
णामिहाप्टी ३ रे
स्तौ।
यदा त्तदा मुन्नमतीह कुच्छात् ॥ ३ दे॥।
तीकणा रुजा वंज्षणवस्ति
कि भेद स्वल्पमुदुमू चमयत्तीह वातातू 1
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पात्त से दर रथ हे दाह कुच्छान्मत
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मु ल्रयत्ती हृपित्तात !1% ४
वस्ते: सिगस्ग गुरुत्व शोधी मूत्र
क .... सपिच्छं कफमुचकुच्छे ।
इसी संदर्भ में चरक हे; दि सर्मीप स्द्ि में. दस्वि रोगों
च्ा दिशेप चर्णन किया हैं । यहां मम की पाब्भाया में
वरित्र्म को 'दो दिशेद सहुत्व दिया हू । यधा-न
युप्तोसर' मर्मशतमर्मिन्छरीर रवन्घ शाखा समाधित
सग्निव्: तेपामन्यतमा पीडायां समघिया पीड़ा भवत्ति 1
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