महाकवि भास | Mahakavi Bhas

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Mahakavi Bhas by बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-विपय-परवेश ११ कटने यह श्राया था कि धत्छराज बन्दी बना लिया गया 1 इषी प्रकार श्रमिपेक नारक में जम रावय सीता से कहता है कि 'इन्द्रजित्‌ू ने राम श्र लदमण को मार टाला} शरन तुम्हें कौन मुक्त करेगा * उसी समय एक राम ाकर कहता हैं “राम ययपि वदद कहना यदद चादता है कि “राम ने इन्द्रजित्‌ को मार डाला | (१४) इन नारकों में समान शब्दों तथा दर्श्यों की श्रवतारणा की गई है । किसी विशिष्ट व्यक्ति के श्रागमन की तुलना ताराधों के मध्य चन्द्रमा के उदय से की गई है । बालि; दुवोघन ठया दशरय सभी स्रस्यु के बाद पवित्र नदी का दर्शन करते हैं तथा उनके लिये देव विमान श्याता है । ( १५ 9 कई नाटवों में समान वाक्यों की उपलब्धि होती हे । उदाइर- सार्थ-जन-सम्मूर्द के बढ जाने पर मागे साफ करने के लिये--“'उस्सरदद उस्सरद श्रय्या ! उत्सरद्द ।* ( दृटिये, इटिये श्रीमानो 1 ) का प्रयोग कई स्थानों पर है। कई विपर्यों का वर्णन मी समानन्प से श्रनेक नाटकों में मिलता है। लैने, सूर्यास्त, रान्यागमन, युद्ध श्रौर युदलेत्र झादि का । इनकी वर्णुन-पद्धति में समानता सुतरा दर्शनीय दे । (१६) एक ही पात्र के द्वारा या श्रन्य पानों के द्वारा प्ों के खरिटत प्रयोग होने हैं । (१७ ) तेरद नाखों में से पाँच नाटवों में दाय श्लोकों में मुदालकार का प्रयोग है | इसमें देवता की स्तुति के साथ-साथ पा्रों का नाम निर्देश तथा कयानक की श्लोर सफेत स्या गया दे। (श्ट) हन नाको में पाणिनीय व्याकरण का क्टोस्तासे प्रयोग नद श्रा फलतः कईं स्थानां पर श्रराणिनीय प्रयोग दिवायी पड़ते हैं । (१६ ) समान नाथ्कीय परिस्थितियों की श्रयतास्था इन नाटकों कीं दिशिपता है । श्रभिपेक तथा प्रतिमा नारको मं सीता यवण॒की प्रार्थना दो श्रस्वीद्यार कर देती ईं तथा उसे शाप देती ६1 इसी प्रकारं चायदत्त में बमन्तसेना मी शकार के श्रनुनय को श्रस्वीउत कर उसे शाप देती है । चाल चरित तथा पश्चरान में जय सैनिकों से उनके राब्ना को नमस्कार करने के लिये कद्दा जाता दे हो वे उपेद्यापूर्वक पूछते ईं कि 'यदद किसका राजा है परविश




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