छोर | Chhor
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छोर / 15
अमता बोली, “अपना नाम आप स्वयं बता सकते हैं । मैं बता नहीं पाऊंगी ।”'
सोमशेखर खुश हुआ ।
“कल फ़ोन का नम्बर कहाँ खो गया था ? '' अमृता ने पूछा ।
“नहीं, खोया नहीं ! तुम घर पर कब रहोगी, इसका पता नहीं था । अब भी
यही लग रहा थ्रा कि दायद तुम घर पर नहीं हो ।''
“क्यों, निराश हो गए ? ''
हाँ, झगड़ाल के हाथ मे फंस हो गया।'.
व्फमे . ,दन हो गण । अब सातो जन्म तक छुट नहीं पाओंगे। अब फ़ोन
पर बातें बघारने की की बजाय सीघे इधर आ जाओ । साथ खाना खाएंगे ।'
''नीलकण्ठप्पा खाना खाने गए है । उनके आने के बाद ही निकल सकंगा ।''
“लव नो मैं दोनों का खाना लगाकर प्रतीक्षा करती रहेंगी । मूख बर्दाश्त न
हई तोः,,६ + ° ? मिलाकर एक गिलास पानी पी लगी । समझे ?
सोमझेखर गया । दोनो साथ खाने बेठ गए । अमृता बिना किसी छेड़छाड़ के
मौपचारिक अदाज में चप रही । कसमसाहट को सहते हुए सोमशेखर ने चूप-
चाप खाना खाया--- दाल, भात, सब्जी, दही । खाना खाकर, हाथ घोकर वह सोफे
पर आ ब्रैठा । कुग देर बाद अमता वहाँ आकर बोली, अगर तुम्हे ऐसा कोई
खास काम न हो दो कार में दोनो एदाट पर चले : बच्चों के आने में अभी तीन
घटे का समय है ।'
“इस घप में *'' उसने पूछा ।
“पहाड़ पर जाने के लिए क्या शाम की ठंडी हुवा और रात को दूधिया चॉदनी
जरूरी है? धप में क्यो न जाएँ ? तुम जेसे लोगो को सुख न कामना मुझे
पमद नहीं ।'' फिर तुरन्त वह दोली, “तुम नहीं चाहते हो तो न. ट्री । तुम्हारे
लिए ठण्डा पंखा लगाऊ ?'' वह पं के रेग्युलेटर को ओर बढ़ी । हवा ठण्डी थी,
फिर भी कसमसाहट के कारण सोमझे पर के चेहरे पर वेचनो दाख पड़ी । अमृता
ने इसे भॉप लिया और अपनी तुनकमिजाजी पर खुद शरमा गई । दो-एक पल
रेग्यूलेटर को ही निहारने के बहाने सोमझषखर को निगाह से अपना चेहरा चुरा
कर खड़ी थी । फिर उसकी ओर मुडकर बोली, “अब मै सच्चे दिल से सॉरी
कहती हूं । माफ़ी चाहती है । गलती के लिए अगर क्षमा नहीं दोगे तो मै सिर
नहीं उठा पाऊँंगी ।” उसके चेहरे मे क्षमायाचना का अपरा? “त साफ़ नजर
भारहाथा। सोमशेखर के चेहरे की नाराजगी गायब हो गई । वह उश्ते हुए
बोला, “चनो, चलते है 1'* अमृता बोली, इस \ ध चलने को इसलिए कह रही
हं कि दोपहर की धूपमे पहाड की चोटी पर खड़ होकर जब हम देखने लगेंगे तब
चारों ओर की प्रकृति घलकर छोर को फलाती हुई अपने आकार को खोती हुई-
सी दिखाई देने लगती है । और अगर लू भी चले तो नीरवता वहाँ जमी रहती है ।
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