मुनि श्री वीर विद्यानंद विशेषांक | Muni Shri Veer Vidhyanand Visheshank

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“पुज्य मुनि विद्यानन्द जो धर्म के श्रद्भुत प्रणेता, श्रमण सस्कृति के प्रतीक, श्राध्यात्मिक सत होने के श्रतिरिक्त विश्व प्रेमी श्रौर विद्रानो के लिए विशेष स्नेह रखने वाले हैं । श्रापके हृदय मे जैन धमे जो विश्व का धमं है उसके उद्योत के लिए बडी लगन है । भगवान महावर स्वामी के २५०० वे निर्वाण महोत्सवे पर जो कायं उनके सरक्षण तथा उनकी प्रेरणा से हो रहा है वह श्रनोखी बात है । उनका नाम सदैव अमर रहेगा । मुनिश्नी के प्रति में श्रपनी श्रादरांजलि श्रपित करता हुं । मुनिश्नी के द्वारा धर्म को खूब प्रभावना हो यही मेरी भावना है ।' (3 [1 स शक न ही. १ < 2९ १ क = ॐ 4.13 (नीहि 1 ९ म [रे भै जी उनके, कं भ 4 4 ५ ् दिः ९५ २ > रै 4 1; ५ = ४५ = 4 (भि) {4 ॐ ~{‰ = हे रे र + अ. ॥ ४ $ न 4 द | किम लः न तन द + ५ < ~ जि परिषद्‌ के प्रधन बा० महावीर प्रसाद जैन, हिसार २५ ग्भ 8. [१ ५ भै 3 4 ८ # की: “८ व कष प रे के इस > + ५ ४ ~. ८; डे ६ 4 भ (५.५.५५ ५ ॐ १८९४ न ट | मनि विद्यानन्द जी के उत्तर भारत में विहार के दा कारण दिगम्बर जैन मुनियो के प्रति जनता मे विशेष श्रादर व झ्ाकर्षण हस्रा है। उनके प्रवचनों से प्राणी- सात्र का कल्याण हुम्मा है । स क प [पि ` ति में अनेकान्त धर्म के सच्चे उपासक युगहृष्टा मुनिश्री ध ˆ विद्यानन्द जी दीर्घजीवी हो तथा समस्त पाणीमात्रका = इसी प्रकार कल्याण करते रहे इसी भावना के साथ मैं | है मुनिश्नी के चरणों मे श्रद्धा के सुमन भ्रपित करता हूं । न्थ के । + च १. परिषद्‌ के प्रधानमत्री क्री सुकुमार चन्द जेन




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