मध्यकालीन धर्म साधना | Madhykaleen Dharm Sadhna

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Madhykaleen Dharm Sadhna by हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मध्ययुग या मध्यकाल भर द्योता । परन्तु मप्ययुग के भक्तो में मगवान्‌ के नाम का माहात्म्य बहुत श्रधिक है। मध्ययुग की समस्त घर्म साधना को नाम की साधना कहा जा सकता है । चाहे सगुण मार्ग के भक्त दों चाहे निगुण मार्ग के, नाम जप के घारे में किसी को कोई संदेह नहीं । इस श्रपार भवसागर में एक मात्र नाम दी नौका रूप है | यद्यपि ऐसा कोई स्थान नदीं दै जहां भगवान्‌ का वास न दो श्रौर मनुष्य का हदय भी निस्छंदेह उसका श्रावाच ट| फिर भी जवतक वह नाम श्रौर रूप के खचि में नहीं दल जाता श्रर्यात्‌ सयुगा श्रौर सविशेष रूप मेँ नदीं प्रकट हो नाता तवर तक वह ग्राह्य भी नदीं । इसीलिए भक्तो के नाम.स्मरण का स्पष्ट श्रथ है, भगवान्‌ के भावदरदीत रूप का स्मरण । व्रमंदिता मे कदा है किं यद्यपि भगवान्‌ का गुण श्रौर प्रकाश श्रचिंतनीय है श्रीर सबके छुदय में रहता हुश्रा भी वद सव के श्रगोचर रता दै--कम लोग दी उसके हृव्य स्थित रूप को जान पाते है--तथापि संत लोग प्रेमांजन से विच्छुरित भक्ति रूप नयनों से सदैव उसका दशंन करते रदते ह श्र्यात्‌ जो श्ररूप दोने के कारण दृष्टि का विषय है उसे प्रेम के अंजन से श्रनुरंजित करके विशिष्ट चनाकर देखा करते रः प्रेमाञ्नच्छुरित भक्तिविलोचनेन सन्तः उदेव हृदयेऽप्यवलोकयन्ति । यं श्याम ॒न्दरमचिन्त्यगुणग्रकाशं गोविन्दमादिपुरषं तमहं भजामि ॥ भगवान का यह प्रेमांजनच्छुरित रूप भक्त की श्रपनी विशेषता है । यह उसे सिद्धिवादियों से श्रलग कर देता है, योग के चमत्कारों को ही सच कुछ मानने वालों से पुथयक कर देता है । श्रौर शुष्क शान के कथनी-कथने वालों से भी श्रलग कर देता है । यद्द नाम श्रीर रूप की उपासना मध्यकालीन भक्तो की श्रपनी विशेषता है| यह बात बौद्ध श्रौर जैन साधकों में नहीं थी, नाथ श्रौर निरंजन मत के साधकों में भी नहीं थी श्रौर अन्य किसी शुष्क शानवादी सम्प्रदाय में भी नहीं थी । जप की महिमा का बखान इस देश मे नया नदीं




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