अवधूत की डायरी | Avadhut Ki Dayari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समझती है । थव यह काफी बडा सस्थान बना गया है । जिस
गुफा में में रहता था वह काफी लम्बी कर दी गई है । और
जट्टा लम्बाई खतम हुई उनके दोनों त्तरफ खुदाई हुई और
उसमे कक्ष निका गय । इस प्रकार अव गुफा कग्रेजी के
'ठी' के झाकार की बन गई है । सीनाग्य वश एक तरफ
खोदते खोदते टेकरी के ढाछ की तरफ द्वार बन गया । टससे
वडा लाभ यह हुआ कि गफा के मख्य द्वार से हवा जाकर
इस पिछले द्वार से निकल जाती है । इससे गफा स्वास्थ्य
लिये भी अच्छी, वन गई है । गुफा में सामने तो मेने एक
तस्त पर अच्छा गद्दा विछाकर ऊपर से मृगछाला बिछा दी
है उसी पर में बैठता हू गीर वही वहता ह जहा पट
वैठता था । मृफाकौजो कम्वाई् वदी दै और दोनो ओर
जो कक्ष वढ है वहा किसी को नहीं जाने दिया जाता । बहा
मरा शिप्य ही जाता हैं । जो महिलाएं मेरी वहत भक्त होती
हूं वे भी जासकती हैं। वाकी जनता के द्ये व्हा फटकने
भी नही दिया जाता 1
अव मेरा नाम चारो तरफ फीलगया है यात्री लोग
दर्शन के ल्य ' जीर अपनी कामना की पत्ति के छिये आने
रगे हैं । इसलिये गुफा के बाहुर् काफी वडा मैदान छोडकर
धर्मशालाएं बनगई हैं । यात्री लोग ठहरने गे हैं । इसलिये
छोटी मोटी दुकानें भी आागई हैं । यहा एक वडासा जनरेंटर
गा दिया गया है इसलिये गफा के भीतर बिजली पहुच गई
है, पखे पहुंच गये हैं । इसके सिवाय सस्थान में भी हर कक्ष
में जौर मदान में विजलीं लगगई है । जन धन वैभव ठाठ,
# १
User Reviews
No Reviews | Add Yours...