अवधूत की डायरी | Avadhut Ki Dayari

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Avadhut Ki Dayari  by श्री सत्यभक्त - Shri Satybhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समझती है । थव यह काफी बडा सस्थान बना गया है । जिस गुफा में में रहता था वह काफी लम्बी कर दी गई है । और जट्टा लम्बाई खतम हुई उनके दोनों त्तरफ खुदाई हुई और उसमे कक्ष निका गय । इस प्रकार अव गुफा कग्रेजी के 'ठी' के झाकार की बन गई है । सीनाग्य वश एक तरफ खोदते खोदते टेकरी के ढाछ की तरफ द्वार बन गया । टससे वडा लाभ यह हुआ कि गफा के मख्य द्वार से हवा जाकर इस पिछले द्वार से निकल जाती है । इससे गफा स्वास्थ्य लिये भी अच्छी, वन गई है । गुफा में सामने तो मेने एक तस्त पर अच्छा गद्दा विछाकर ऊपर से मृगछाला बिछा दी है उसी पर में बैठता हू गीर वही वहता ह जहा पट वैठता था । मृफाकौजो कम्वाई्‌ वदी दै और दोनो ओर जो कक्ष वढ है वहा किसी को नहीं जाने दिया जाता । बहा मरा शिप्य ही जाता हैं । जो महिलाएं मेरी वहत भक्त होती हूं वे भी जासकती हैं। वाकी जनता के द्ये व्हा फटकने भी नही दिया जाता 1 अव मेरा नाम चारो तरफ फीलगया है यात्री लोग दर्शन के ल्य ' जीर अपनी कामना की पत्ति के छिये आने रगे हैं । इसलिये गुफा के बाहुर्‌ काफी वडा मैदान छोडकर धर्मशालाएं बनगई हैं । यात्री लोग ठहरने गे हैं । इसलिये छोटी मोटी दुकानें भी आागई हैं । यहा एक वडासा जनरेंटर गा दिया गया है इसलिये गफा के भीतर बिजली पहुच गई है, पखे पहुंच गये हैं । इसके सिवाय सस्थान में भी हर कक्ष में जौर मदान में विजलीं लगगई है । जन धन वैभव ठाठ, # १




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