मंगलमोद | Mangalamod

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Mangalamod  by अन्न पूर्णानन्द - Anna Poornanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उस्छूकी उड़ान चोर बढ़ी सफ़ाइसे एक सोखतेका टुकड़ा मेरे पास पेंकिकर चल दिये ! मैंने उस सोखतेके टुकडेफ्ो चड़ी सावधानी से उल्लटकर देखा ! उसपर पर्चेके दो सबसे किन अश्नों के उत्तर उनकी संक्षिप्त विधिके सदिव पेन्सिलके बहुत हलके दाथसे लिखे इए थे) बे क्या था | दो सवाल तो मैंने मार लिये ! बाकी बय रये चार, छुल छः करने थे । इनसे केसे लिपटा जाय ¶ खव छागेकी सुध लेनी थी । मेरे उपर अकारण कृषा करनेवाले गाड सदोदय भी कदी खिसक गये थे } ठीक इसी समय एक ऐसी धदना हुई; जिसने मुझे सच पूछिये, तो क़तरेसे दरिया कर दिया । सुमसे कुछ दूरपर मेरे ही स्कूलका एक लड़का बैठा हुआ था । बट यकायक खड़ा हो गया श्रोर बड़े उत्तेजित सखरयं अपने पासवाले याडंसे वोला--'मास्टर साइन ! सास्टर साइव !! यह 'चोथा सवाल ग़लत छापा है।' गाढने उसे डॉटकर बेठा दिया । और सभी लोग उसकी बातपर अविश्ासकी हसी द पड़ । पर मैने इस मोक़ेपर बड़ी समकदारीसे काम लिया ।




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