श्रीमदयानंद प्रकाश | Srimadyanand Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
560
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छठ
भोग्प पदों की महाएंता दिनोद्िन धदतों थी चलो जा रही £ैं, निस
निसारियों का कातर क्रलन दिराम-विध्यमपिददीन होने लग गया दे।
श्री स्वामौगी यह भी जानयैये कि मारत-मुमि रान-्यर्मा दै, सुझझ्ा,
सुला दै । उमर नहीं, किन्दू उस्दंरा घौर सस्ययालिनी है । इस पर पादार-
योगय मामा धान्य उव दोन ई! इ पर सुस्वादु पलो श एटि भी नही ६।
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फिर माना षसुन्परा द्पनौ सन्तान फा लाचन-पालन कयो नटो कर सकती १
सरे शादते छके-वाने भूः के म इसकी गोद में देटे पिल्लप-विलख कर
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छप केभरभोष्ठा उसर महपिंने श्रष्द रह समम लिया था । उतकी दिव्य
दृशि पे नित्य फे धकाल के कारणों का दुरे रहना सवया ग्रमम्भ्व या | वे तानते
थे कि भूमि की उप्र में मेद नहीं पदा, किन्तु हु डे पूद्धि दो गई दो सो कोई चाश्रयं
नहीं । फिर थी यहां भू र चौर दुर्भि ६, मो इसका कारण शिदपकला षा
भारी अभाव है। आवश्यकोय ब्यवदार की परतुय यहाँ निर्मित गर्दी होती ।
विदेशी चस्तुदों को भरमार से यहां के कारों परिश्रम निरुस्मे दो रे हैं । उनके
पाम झाजीडिका कर कोई उपाय नहीं रद्द । पदले साधारण परिष्टियठि के मनुष्य
से लेकर मद्दाराजों और राजे भ्वरों तक इसी देर के यने वस्तरों से वेश-विन्याम करते
थे, यहाँ ऊँ रान-जटित चौर मणि-सुक्-एवित श्रामृपणों से विमूपित होते ।
उमके श्रााश-मेदो मयम दसो दे के हतकम्मी दिशवकम्माधिो के दवारा बनाये
जाति । उनकी सुसलित करने के लिए भारत को चिश्रशाजाधों के पिशारों ही
से थदूमुत चिप्र प्रा हो जति । परन्तु शान सथ कदु पिपरी हो गया है ।
महारा, बूम वक्त को भो नि, श्रपने भाप को भ्याख्याने-मवन की सुलों
शको से पार कर देनेमें हो अपने दुर-दित की सम्पदं मसा महं मानने
थे । वे परम कर्म-योगी थे, इस कारण क्रियास्सक कमें करना थाइते थे । उनके
जीवन के श्रन्तिम दर्पौ तं, उनके धर्म॑-प्रचार प्रौर समाज-मुधार झादि उदास
उश्यों में, भारंतबंध में रिदपकलज्ा का विस्तारित करना मी सम्मितित दो गया
था 1 वे इसके लिए पूं भ्रयटन कर् रद थे । उन्दोंने पते पश्चिमी शिष्य 'वीस
महाशय म क्षिसा था ङि शाप भारतवासियों को शिदपनकला सिखाने का प्रबंध
कीनिए 1 मदारान के पग्र के उसर में जर्मन देश निवासी शोमानू जी,ए. बीस ने
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