मुद्रा एवं बैंकिंग | Mudra Avam Banking

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{4 | मुद्रा एवं बिग (घ) पूजीवादी अये-व्यवस्था मे अतेक व्यवसायी सट्टा करने हेतु पूंगी को तरल रूप मे रखना चाहते है । प्रो० वेन्जने इसे सटा उदेश्य (ल्श पाण्ट) कहा ' इन सभी उद्देश्यो की पुर्ति के लिए पूँजी को तरल रूप में रखना आवश्यक होता है और मुद्रा इसके लिए सर्वोत्तम साधन है 1 दि ८१ जैसा हमने ऊपर देखा, आधुनिक अर्य-व्यवस्था मे मुद्रा महत्वपूर्ण कार्यं सम्पन करती है । आधिक विकास के साथ साथ मुद्रा दर किये गये कार्यों मे भी बृद्धि होती चली गवी है, परन्तु आज भी मुद्रा के मुख्य कार्य चार ही माने जते है--विनिमय या माध्यम, मूल्ये का मापक, स्थगित भुगतानों का मान और क्रय-शक्ति के सचय का साधन । मुद्रा कि ये चारो मुख्य कार्य एक-दूसरे पर निभेर हैं । मुद्रा के रूप में सचय इसलिए किया जाता है क्योकि यह विनिमय का माध्यम है तथा स्थमित भुगतानों का मान है । इसी तरह विनिमय का माध्यम होने के कारण ही मुद्रा का लेखे की इवाई (७७0 9८८०७) था. मूल्य मापक के रूप में प्रयोग किया जाता है । मुद्रा का स्वरूप # 3.8...) मुद्रा के स्वरूप वी व्याख्या करते समय. यह. बताना आवश्यक है. कि मुद्रा केवल साधन (7८००5) है, साप्य (लात) नही 1 जैसा विदित है. मनुष्य अपनी आवश्यकताओं वी ` पूति विभिन्न प्रकार की वस्तुओ एवं सेवाओ द्वारा करता है ! वतमान प्रणाली के अन्तग इत वस्तुओ एवं सेवाओ को केवल मुद्रा से ही खरीदा जा सकना है, अर्थात मुद्रा मनुष्य की मावश्यक्ताओकी सन्तुष्टि का एक साधन हे भौर इसी माध्यम से वट्‌ अपनी आवश्यकताओं की पूति बरता है। मुद्दा का अपने आप से कोई महत्व नहीं है । मुद्रा की टच्छा तो इसलिए की जाती है क्योकि इसे द्वारा मानव अपनों आवश्यकताओं की संतुष्टि कर सबता है। इस प्रबार मुद्रा वेबल साधन ही है, साध्य नहीं। मुद्र! ओर चलां (1४107९४ 870 (एप्त) सण्धारण भाषा म मुद्रा तथा चलाय मे कोई अ«्तर नहीं क्या ताता दै, परन्त्‌ अर्थशास्त्रे इन शब्दों का अलग अताग अर्थो मे प्रयुक्त किया जाता है । “चलाथ शब्द से अभिप्राय कैवलं धा सिन तथा विधिग्राह्य (1८801 (सातंट) मुद्रा से ही होता है। चताथ के अत्तर्गत ध तु मी एवं कापजी मुद्रा हो सम्मिलित किया जा सत्ता है । इन्ह चलाथ इसलिए महा जाता है, क्योकि कानूनी दृष्टिकोण से इन्ही का देश के भीतर प्रचलन होता है । परन्तु 'मुद्दा' शब्द को अधिक विस्तृत अथं दिया गया है । मुद्रा मे धातु सिक्के एवं कांगजी मुद्रा त* सम्मिलित हृ'ती ही हैं परन्तु इनके अतरिक्त साखपतों आदि को भी इसम सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार “मुद्दा शब्द का क्षेत्र चलाथं' शब्द की तुलना में अधिक विस्तृत होता है । मुद्रा तथा चलाये के अन्तर को यह्‌ कहकर और भी स्पष्ट किया जा सकता है कि सभी चलार्थ तो मुद्दा हाते हैं परन्तु सभी मुद्दाओ को चार्थे मही कहा ग सक्ता { 1} एपाषटा८छ 5 006४ एष गा प्राठाी९४ 15 101 एणा) ॥ मुद्रा का महत्त्व ([पाष्०क्षत्ल ण णप) आधुनिक अर्थ-व्यवस्था मे मुद्रा का महत्वपूर्ण स्थान हैँ । मुद्रा के अभाव म आधुनिक अर्थ व्यवस्था प्रचलित हो नहीं हो सकती । अधशास्त की सभी शाखाओ--उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा राज्य वित--मे मुद्रा का महत्वपूर्ण स्थान है। जैसा डॉ० माशंल ने वहा है, दरा बहे धुरी है जस्त पर अर्थ विज्ञान चक्र लगाता है ।” वास्तव में, मुद्रा माभव को एक सह बपूर्ण आविष्कार है । प्रो० काउयर (01०५ फरेंट) के शब्दों से, * सुद्ा मानवीय आविष्कारों मे सेवसे महत्वपूण है ।' ज्ञान की प्रत्येक शाखा म एक न एक महत्वपूरण आविष्कार होता है जैसे यन्वकला (76८11015) मे चक्‌, विज्ञान मे अन्नि, राजनीति शासन मे मताधिकार्‌) इसी प्रकार अर्यशास्त्र तथा मानव वे सामाजिक जीवन क व्यापारिक पक्ष में मुद्रा एक आवश्यक आविष्कार है और इसी पर अन्य सभी बातें आधारिन हैं । वतमान अर्थ व्यवस्था में मुद्रा का महत्व निम्नलिखित बातो से स्पष्ट किया जा सकता है कै




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