कबीर और जायसी का राश्यवाद और तुलनात्मक अध्ययन | Kabir Aur Jaysi Ka Rahsyawad Aur Tulnatmak Adhayan

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Kabir Aur Jaysi Ka Rahsyawad Aur Tulnatmak Adhayan by डॉ. सुरेन्द्र नाथ - Dr. Surendra Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २६ ) एएमपेछा्ता० एमाण्णषड में इन श्नुभूतियों का वर्णन करते हुए . लिखा है-- “उपनिषदों में चार प्रकार की रहस्यानुसूतियाँ विखरी मिलती हैं, जिनका सम्बन्ध क्रमदाः रूप, रंग, शब्दे श्रौर प्रकाश से है ।”1 हमारी समभ में उपनिपदों में केवल चार प्रकार की रहस्यानुभूतिरयां ही नहीं मिलती है वरन्‌ चे उन समस्त प्रकार कौ रहस्यानुभूतियो का कोप है जिनकी किसी भी रहस्यवादी ने कमी भी श्रनुभृति की होनी । यहाँ पर हम उपयुं वत चार प्रकार की रहस्यानुमूत्तियो का परिचय कराकर कुछ श्रन्य प्रकार की रंहस्यानुभूतियों का संकेत कर श्रपने मत की पुष्टि करेंगे । रूपाकार-सम्बन्धी श्रनुमूतियो कौ चर्चा “श्वेताश्वतर उपनिपद्‌' की निम्नलिखित पंक्तियों में की गई है-- ' 'योगन्साधना करने पर उस ब्रह्यःकी श्रतुमूति नीहार, धूम, सूये, श्रगनि, -वायु, जुगनू, विजंली, स्फटिक श्रौर चन्द्र के रूप में हुश्रा करती है 12 इसी प्रकार श्रवरन्द्रिय से सम्बन्धित अरनुभूतिरयां मी मिलती हैं । वृहदारण्मकोपनिपद्‌' मे शब्द रूप मे ब्रह्यानुभूतियों का वर्णन : इस ` प्रकार किया गया है-- शब्द, पचने-क्रिया श्रौर भोजन-क्रिया का परिणाम 'है। कोई भी मनुष्य इनं श्रपनी ररा वन्द करके: सुन सकता है किन्तु जवं १ “णपः € म क्ल 6०९९ ण ४४९ तोह : 6 0 99 8०४८१८९0 7 पठे एङकणोऽ४९त६३ पणपठ) 0887 ए०४ुटपविए छत 0 ४06 ष्याड, © एणठण्ा8; € इनप०त8 छत कटाक ण का९ ` छकएठपरणण्ट्त फ ~ पठ कुढतरि८७. 20 16 एाएष्ठ्डडः रम एणच्ठपपक्ष्जप २ नीहार धूमा्कानलानिलानां खद्योत विय स्फटिक शबिनामु। ए एतानिः रूपासि परःसराखि - ब्रह्ण्यभिन्यवित. कल्मखियोगे 11 : गदइचेताइवतर २।११




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