महाकाव्य विवेचन | Mahakavya Vivechan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
133
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ऋषचाए' हैं । उसमें स्तुतियाँ हैं । यजुर्वेद में गद्य का झ्रंश भी है, जो श्रौर भी पर-
वर्तौ माना जाता है । श्रथर्वेवेद को भ्रन्तिम माना जाता है । उसके बाद ब्राह्मण
ग्रन्थ हें, जिनके बाद श्रारणयक ग्रन्थ माने जाते है |
प्रारंभ से विकास--वेद का प्रारम्भ कभी चरवाहों के गीतों के रूप में
हुश्रा होगा । वे गीत मुंह जवानी याद रखे जाते थे । जिस प्रकार गोरखनाथ की
अपभध्र दा भाषा जोगियों के मुख में धीरे-धीरे बदलती रही श्रौर श्राज जो गोरख-
नाथ की कविता कहलाती है वह वास्तव में गोरखनाथ की नहीं है, उसी प्रकार
वेद की भाषा भी बदलती रही । कब उन गीतों का रूप स्थिर हुभा, हम नहीं
जानते । किन्तु वेद में प्रारम्भ में स्तुतियां हे, तथा जन-काव्य भी ह । परवर्ती
काल में पुरोहित कर्मकाराड उसमें बढ़ता गया । अ्रथवेवेद मे जादू-टोना भी घुस
श्राये । विद्वानों का कथन है कि पहले ग्रोर्यर्य प्राकृतिक वस्तुश्रों के उपासक थे, वे
जादू-टोना नहीं मानते थे । जादू-टोना उनमें अनाय्यों के मिलन से श्राया । इस
विचार को युरोपियन इसलिये मानते थे कि उनके हिसाब से वे भी श्रार््य थे ग्रौर
भ्रार्य सदेव श्रेष्ठ रहे थे । भ्रनार्य्थपन भारतीयों से श्राय्यों में घुसा था । भारतीयों
ने इस विचार को इसलिए श्रपनाया कि वे भी श्रपने अतीत को बहुत गौरवमय
श्रीर श्रेष्ठ मानते थे । उनकी राय में भी श्रनार्य्य बहुत खराब लोग थे । परन्तु
बाद में यह भ्रान्ति दूर होने लगी । लोगों ने देखा कि कुछ श्रनार्य्य जातियाँ भी
बड़ी सभ्य थीं । बल्कि उनकी तुलना में ग्रारव्य ही बर्बर थे । उस प्राचीन काल
में भ्रार्य कोई जाति नहीं थी । श्रार्य्य एक संस्कृति थी । ब्रात्मस्तोत्र प्रगट करता
है कि अन्य लोग भी भ्राय्यं बनाये जाते थे । कई कबीले थे, कोई तुर्वसु, कोई
भरत, कोई मद्र, कोई पञ्चाल के । बाद मेँ इनके निवास-स्थानों के नाम इनके
नामों पर ही पडे । अ्रलग-ग्रलग कबीलो मं ्रलग-प्रलग पुरोहित थे । सम्भव है,
त्रिवेद मानने वाले कबीले ग्रथर्ववेद माननेवाले कबीलों को सम्मान नहीं देते थे,
किन्तु कालांतर में श्रथरवंवेद वाले कबीलो कौ कविताए भी पूज्य मान ली गई ।
हम यह भी स्पष्ट नहीं बता सकते कि चारों वेदों में कितना श्रार्य्य है, कितना
भ्रनार्यर्य । संस्कृतियों का जब मिलन होता है, तब श्रंतभु क्ति श्रनेक रूपों में होती
है। ग्रायों के ही विभिन्न विश्वास अ्रनार्य्य सम्बन्धों से मिलकर विभिन्न रूपों में
प्रगट हुए, वे ही वेद हैं ।
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