खडीबोली का लोक साहित्य | Khadiboli Ka Lokasahitya

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Khadiboli Ka Lokasahitya by सत्या गुप्त - Satya Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पवे-भरूमिका 'खड़ीबोली का लोक साहित्य शीर्षक शोध-प्रबन्ध का स्वागत करते हुए. मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है । इसमें सुश्री डा० सत्या गुप्त में बहुत परिश्रम- पूर्वक प्राचीन कुरु-जनपद की छानबीन की है । कौरवी बोली को ही आजकल खड़ीबोली कहा जाता है। इस बोली ने ही अधिकांश राष्ट्रभाषा एवं अर्वाचीन हिन्दी का साहित्यिक रूप ग्रहण किया । इस बोली का एक छोर ब्रजमाषा से और दूसरा हरियाना की बाँडड्-भाषा से मिला है । इसका शुद्ध रूप मेरठ: जनपद के गाँवों में पाया जाता है । वहाँ से उसकी शुद्ध व्याकरण शब्दावली एवं लोक-साहित्य का सर्वागीण संग्रह अभी नहीं हो पाया है । मेरा अपना जन्म मी मेरठ जिले के एक गाँव में हुआ है, जो हापुड़ और गाजियाबाद के बींच में पिलखुआ से लगभग १।। मील पर है । अत: मुझे विंदित है कि कौरवी बॉली के दुद्ध रूप में वर्णों को द्वित्व करने की परिपाटी नहीं है, वहाँ के निजी उच्चारण में शुद्ध रुप 'लोटा' है लोट्टा नहीं; किन्तु हमें यह भी न भूलना चाहिये कि इस जनपद के बीच-बीच में ऐसे गाँव भी हैं जिनकी बोली पर जाटू या बाँडड.- भाषा का प्रत्यक्ष प्रभाव है । ज्ञात होता है कि कुरु-जनपद में वहाँ की जन परिपाटी और बोलियों पर किसी समय जाट जाति या उनकी' बोली का विशेष अनुप्रवेश हुभा भौर दोनो परस्पर घुल मिल गया । किन्तु जाटों और ठाकुरों द्वारा प्रयुक्त मातुभाषाओं में आज मी अन्तर बना हुआ है जिसकी ओर ध्यान देना आवश्यक है जिससे किं खड़ीबोली के शुद्ध रूप का उद्धार किया जा सके । मेरठ की भाषा और साहित्य सम्बन्धी कार्य करने वाली किसी केन्द्रीय संस्था की अभी तक कमी है । मेरठ जनपद से बाहर रहने के कारण मैं स्वयं इस विषय में काये न कर सका जौर फिर मेरा कार्य क्षेत्र संस्कृत भाषा के महान्‌ साहित्य की ओर मुड़ गया । श्री विंदवम्भर सहाय प्रेमी से मैंने इस संबंध में विस्तृत' बात' चलाई थी किन्तु उनके हाथमे भी अन्य कार्य होने से वें इस ओर ध्यान न दे सके । महापण्डित राहुर सांकृव्यायन की कल्पना ओर कायेशक्ति विलक्षण थी! उन्होने अवद्य इस ओर ध्यान दिया । आदि हिन्दी की कहानियां और गीत एसा ही संग्रह था जिसने अनेक लोगों का ध्यान खींचा । मुझे ज्ञात हुआ है.कि डॉक्टर कृष्णचन्द्र शर्मा ने एक रोध-प्रबन्ध के रूप में मेरठ जनपद के लोकगींतों पर सुन्दर कार्य किया हैं, किन्तु वह अप्रकाशित है और उसे मैं देख नहीं पाया हूँ ।




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