विश्व भारती पत्रिका | Visvabharati Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्वभारती पत्रिका खण्ड- ४५५, अंक १-४, चैत्र २०६१ - फाल्गुन २०६९, अप्रैल २००४ - मार्च २००५ न्ति नि तात रवीन्द्रनाथ के गीत : जातीय संगीत' ओर “स्वदेश ' पर्वं से * (१) एक सूत्रे बोधियाक्ि सहस्रटि मन, एक कार्ये संपियाक्ति सहस्र जीवन-- , वन्दे मातरम्‌।। आसुक सहस्र बाधा, बाधुक प्रलय, आमरा सहस्र प्राण रहिब निरभय- वन्दे मातरम्‌।। आमरा डराइब ना झटिका-झंझाय, अयुत तरंग वक्षे सहिब हेलाय। टुटे तो टुटुक एइ नश्वर जीवन, तबु ना छिंड़िबे कभु ए दुढ़ बन्धन- वन्दे मातरम्‌।। (२) नववर्षर दीक्षा नव वत्सरे करिलाम पण लब स्वदेशेर दीक्षा-- तव आश्रमे तोमार चरणे हे भारत, लब शिक्षा परेर भूषण, परेर वसन, तेयागिव आज परेर अशन-- यदि हई दीन ना हइब हीन, छाड़ब परेर भिक्षा। नव वत्सरे करिलाम पण लब स्वदेशेर दीक्षा।। * परिचय के लिए देखें, ' अपनी बात'




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