विश्व भारती पत्रिका | Visvabharati Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विश्वभारती पत्रिका
खण्ड- ४५५, अंक १-४, चैत्र २०६१ - फाल्गुन २०६९, अप्रैल २००४ - मार्च २००५
न्ति नि तात
रवीन्द्रनाथ के गीत : जातीय संगीत' ओर “स्वदेश ' पर्वं से *
(१)
एक सूत्रे बोधियाक्ि सहस्रटि मन,
एक कार्ये संपियाक्ति सहस्र जीवन-- ,
वन्दे मातरम्।।
आसुक सहस्र बाधा, बाधुक प्रलय,
आमरा सहस्र प्राण रहिब निरभय-
वन्दे मातरम्।।
आमरा डराइब ना झटिका-झंझाय,
अयुत तरंग वक्षे सहिब हेलाय।
टुटे तो टुटुक एइ नश्वर जीवन,
तबु ना छिंड़िबे कभु ए दुढ़ बन्धन-
वन्दे मातरम्।।
(२)
नववर्षर दीक्षा
नव वत्सरे करिलाम पण लब स्वदेशेर दीक्षा--
तव आश्रमे तोमार चरणे हे भारत, लब शिक्षा
परेर भूषण, परेर वसन, तेयागिव आज परेर अशन--
यदि हई दीन ना हइब हीन, छाड़ब परेर भिक्षा।
नव वत्सरे करिलाम पण लब स्वदेशेर दीक्षा।।
* परिचय के लिए देखें, ' अपनी बात'
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