ज्ञानोदय लेख - सूची | Gyanoday Lekh Suchi

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Gyanoday Lekh Suchi by मुनि कान्तिसागर - Muni Kantisagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीपबेतकी सजीव कला : बोधि-मुद्दा करते ही रात्रिका महोत्सव प्रारम्भ होगा । तुम अपना ध्यान महाकालके चरणोमे स्थिर रखनेकी चेष्टा करो, तुम्हारे लिए यह्‌ पुण्य अवसर ह । चित्रकार मौन था-ध्यानावस्थित । विकराल वेशधारी नागाघोरके मंदिरमें आते ही कापालिकोंकी घौर जयकारके साथ चित्रकारके गलेमें बलि- माला पहना दी गई । उसके दोनों पारवेसे दो असि-धारे चमक उठीं । कापालिकोके घोर नादसे मंदिरका कण-कण प्रकम्पित था । महामांसश्च्के प्रसादके लिए सबकी जीभ लार टपका रही थी । अवशेष था नागाघोरका एक महाअद्हास, ओर चित्रकारकी गदेन पर दो तीव्र असि प्रहार । सहसा एकं बौद्ध ॒भिक्षुने कापा- लिक-समूहमें प्रवेश कर नागाघोरको सम्बोधित कर कहा--महाकापालिक, सामने दृष्टिपात करो ।. आइ्चयं- चकित हो सबने देखा--चित्रकारकी गुफासे प्रकादाकी किरणे छिटक रही हैं और सिह, व्याघु, भेडिये आदि वन्य परु उसी ओर दछर्लागिं भरते जा रहं हे । प्रकारको देखते ही नागाघोर ओर सभी कापालिक विमुग्ध हौ उसी ओर दौड पड़े। गुफाद्वार पर कापालिकोके पहुँचते ही पद्युओं और झवापदोंने उनके लिए रास्ता छोड़ दिया । -नागाघोरकी दृष्टि भित्ति- चित्र पर गई । नतमस्तक हौ उसने घुटने टेक लिए ¦ दूसरे कापालिक्रोने उसका अनुकरण किया । मानव, पनु ओर हिस्र जीव सभी -नरमांस 9८७ आत्मविभोर थे। सबमे आत्मानन्द लहरें ले रहा था । मृत्यु और वासना पर करुणा प्रतिष्ठित हो जीवन-प्रवाहू को मोक्षकी ओर प्रेरित कर रही थी । वासना और मुृत्युकी रेखाएँ देंखते- देखते अन्तहिंत हो गई जिस प्रकार बटन पर आकषंणका आघात होते ही विद्यतू-प्रकाश भर आता है और अंध- कार लुप्त हो जाता है । चित्रकार, भिक्षुकूमार मद्र उसी प्रकार ध्यानमग्न महाकालके सामने खडा था । प्रातः होते ही अरुणोदयकी आभा- मे नागाघोरने अपने सभी कापालिक शिष्योंके साथ वोधिसत्त्वकी उपसम्पदा स्वीकार की और वहाँ महाकाल वोधि- कलागार की स्थापना हुई और नागा- घोर उसका प्रधान स्थविर बना जिसकी प्रेरणाकी देन ह, अलोरा ओर अजंताकी कलाएं । चित्रकारकी अखि खुली तो देखा, उसकी बहन चित्प्रभा उसके सामनं खडी हं 1 प्रभे ! मे कहाँ हूं? यह महाकालका कक्ष ह ।'” “तुम यहाँ केसे ? ” “तुम्हारी कलाकों सजीव करने । मे भिक्षुवेषमे तुम्हारी खोजसं पिता- जी की आज्ञासे निकल पड़ी । ' कितने नगर-ग्राम, वन, पर्वत और .नदी-नाले छान डाले । इसी पर्व॑त-प्रान्तिरके एकः घोषमें इस रात्रिसें - निवास ; किया था! सुषुप्ति अवस्थामे ही मुक, उदयापन- ^ # ५ ^ क 4 4 डे ई + अर




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