ज्ञानोदय लेख - सूची | Gyanoday Lekh Suchi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
442
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीपबेतकी सजीव कला : बोधि-मुद्दा
करते ही रात्रिका महोत्सव प्रारम्भ
होगा । तुम अपना ध्यान महाकालके
चरणोमे स्थिर रखनेकी चेष्टा करो,
तुम्हारे लिए यह् पुण्य अवसर ह ।
चित्रकार मौन था-ध्यानावस्थित ।
विकराल वेशधारी नागाघोरके
मंदिरमें आते ही कापालिकोंकी घौर
जयकारके साथ चित्रकारके गलेमें बलि-
माला पहना दी गई । उसके दोनों
पारवेसे दो असि-धारे चमक उठीं ।
कापालिकोके घोर नादसे मंदिरका
कण-कण प्रकम्पित था । महामांसश्च्के
प्रसादके लिए सबकी जीभ लार टपका
रही थी । अवशेष था नागाघोरका
एक महाअद्हास, ओर चित्रकारकी
गदेन पर दो तीव्र असि प्रहार ।
सहसा एकं बौद्ध ॒भिक्षुने कापा-
लिक-समूहमें प्रवेश कर नागाघोरको
सम्बोधित कर कहा--महाकापालिक,
सामने दृष्टिपात करो ।. आइ्चयं-
चकित हो सबने देखा--चित्रकारकी
गुफासे प्रकादाकी किरणे छिटक रही
हैं और सिह, व्याघु, भेडिये आदि
वन्य परु उसी ओर दछर्लागिं भरते जा
रहं हे । प्रकारको देखते ही नागाघोर
ओर सभी कापालिक विमुग्ध हौ उसी
ओर दौड पड़े। गुफाद्वार पर
कापालिकोके पहुँचते ही पद्युओं और
झवापदोंने उनके लिए रास्ता छोड़
दिया । -नागाघोरकी दृष्टि भित्ति-
चित्र पर गई । नतमस्तक हौ उसने
घुटने टेक लिए ¦ दूसरे कापालिक्रोने
उसका अनुकरण किया ।
मानव, पनु ओर हिस्र जीव सभी
-नरमांस
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आत्मविभोर थे। सबमे आत्मानन्द
लहरें ले रहा था । मृत्यु और वासना
पर करुणा प्रतिष्ठित हो जीवन-प्रवाहू
को मोक्षकी ओर प्रेरित कर रही थी ।
वासना और मुृत्युकी रेखाएँ देंखते-
देखते अन्तहिंत हो गई जिस प्रकार
बटन पर आकषंणका आघात होते ही
विद्यतू-प्रकाश भर आता है और अंध-
कार लुप्त हो जाता है ।
चित्रकार, भिक्षुकूमार मद्र उसी
प्रकार ध्यानमग्न महाकालके सामने
खडा था ।
प्रातः होते ही अरुणोदयकी आभा-
मे नागाघोरने अपने सभी कापालिक
शिष्योंके साथ वोधिसत्त्वकी उपसम्पदा
स्वीकार की और वहाँ महाकाल वोधि-
कलागार की स्थापना हुई और नागा-
घोर उसका प्रधान स्थविर बना
जिसकी प्रेरणाकी देन ह, अलोरा ओर
अजंताकी कलाएं ।
चित्रकारकी अखि खुली तो देखा,
उसकी बहन चित्प्रभा उसके सामनं
खडी हं 1
प्रभे ! मे कहाँ हूं?
यह महाकालका
कक्ष ह ।'”
“तुम यहाँ केसे ? ”
“तुम्हारी कलाकों सजीव करने ।
मे भिक्षुवेषमे तुम्हारी खोजसं पिता-
जी की आज्ञासे निकल पड़ी । ' कितने
नगर-ग्राम, वन, पर्वत और .नदी-नाले
छान डाले । इसी पर्व॑त-प्रान्तिरके एकः
घोषमें इस रात्रिसें - निवास ; किया
था! सुषुप्ति अवस्थामे ही मुक,
उदयापन-
^ # ५
^ क 4 4 डे ई + अर
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