चन्द्दा | Chadda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.14 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)करणा का सन्ददा वाहक श्ः वीर हूं अंगुत्तर निकाय का यह वाक्य उनके लिए जितना सत्य हे उतना और किसी के लिए नहीं । उनकी विजय मनुप्यता की देवत्व पर विजय हैं। विडस्वना यह है कि ऐसे पूर्ण मनुप्य को मनुष्य ने फिर देवताओं में मिंवसिन दें डाला | भारतीय विचार-परम्परा से बुद्ध की विचारधारा कोई साम्य नहीं रखती ऐसी भ्रानत धारणा का अभाव नही यह सत्य हैं कि वृद्ध अपनी दिशा सें मौलिक हूँ परन्तु तत्कालीन वातावरण से उनका सम्बन्ध नहीं ऐसी कल्पना से न बुद्ध की विचारधारा का महत्त्व बढ़ता है न हमारे चिन्तन की विविधता का सम्भवत. वौद्ध-धर्म के अपनी ही जन्मभूमि से निर्वासित हो जाने पर उसके मूल सिद्धान्तों के सम्बन्ध से हमारे अजान ने ही एक प्रकार के का स्थान ले लिया हो। उसके अनेक सिद्धान्त हमारे जीवन में नित्य प्रयुक्त होते रहें उसके कक्ता शिल्प आदि के आदर्द हमारे साथ चछते रहे पर हमने उस धर्म को अपने से दूर ही माना अवदंय ही इस धारणा नें हमारी सांस्कृतिक चेतना की एक महत्त्वपूर्ण घारा को उसकी मूल धारा से भिन्न स्थिति देकर हमें कुछ दर ही वनाया । उस विचारधारा के प्रति हमारा दुष्टि- कोण रहा अवद्य पर उस समन्वय के प्रति हम जागरूक नहीं रहे । इसीसे अन्तर ज्यों का त्यों बना रहा । वास्तव में बुद्ध के समय तक उपनिषदों में मिलने वाली चिन्तन प्रणालियाँ बहुत विकसित हो चुकी थीं और तत्कालीन विचार स्वातल्य के कारण उनकी विविधता उत्तरोत्तर बढ़ती
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