नागरिक शास्त्र की विवेचना | Nagarik Shastr Ki Vivechana

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Nagarik Shastr Ki Vivechana by गोरखनाथ चोबे - Gorakhnath Chobey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नागरिक शास्त्र, विस्तार श्रौर श्रन्य शास्त्रों से इसका सम्बन्ध. ३ जिस समाज मेँ रहता है उसके प्रति उसके बहुत से कत्तव्य ह | उनका जान मनुष्य के लिये श्रावश्यक है । कुटुम्ब के प्रति उसके क्या कत्तव्य हैं, धार्मिक संस्थाओं से उसका क्या सम्बन्ध है, तथा राजनेतिक संगठन में उसे कौन कौन से श्रधिकार प्राप्त है-- इन सव के शान को नागरिक शास्त्र कहते हैं । श्र्थात्‌ जिस शास्त्र के श्रन्दर नागरिक के श्रधिकासैं और कतब्यों का वणुन होता है वह नागरिक शास्त्र कदलाता है। नागरिक शाख््र ओर नगरः शब्द से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है । हिन्दी भाषा मं हम नगर शब्द का श्रथ 'शहरः करते है परन्तु नागरिक शास्त्र केवल शहरों का शास्त्र नहीं है। भारतवष में लगभग ७ लाख गाँव हैं। इन थ्रामों के श्रध्ययन को ग्रामशास्त्र कहते हैं । नागरिक शास्त्र और ग्रामशास्त्र दोनों एक ही हैं । जिस शास्त्र से नगर श्रथवा ग्राम निवासिपों की रहन सहन का शान हमें प्राप्त हो वह नागरिक शास्त्र अथवा ग्रामशास्त्र कहलाता है । श्रर्थात्‌ जो व्यक्ति ग्राम या नगर में रहते हैं उनकी रहन सहन केसी है, उनके श्रन्दर किस प्रकार के कितने संगठन हैं, उनकी श्रार्थिक तथा सामाजिक व्यवस्था केसी है--इन सबकी जानकारी नागरिक शास्त्र के श्रन्दर मौजूद होती है । साथ ही यह शास्त्र श्रादर्श जीवन का माग॑ भी समाज के सामने रखता है ।# हमारे देश में 'ग्रामशास्त्र' शब्द 'नागरिक शास्त्र से अधिक उपयुक्त है, क्योंकि हमारा देश गाँवों का देश है। इस शास्त्र के श्रन्तगत हम मनुष्य का ही अध्ययन करते हैं । किन्ठु मनुष्य की बनाई हुई संस्थाश्रों का जब तक हमें शान न होगा, तब तक हम उसे नदीं समभ सकते । अफ़लातून ऐसे यूनानी दाशनिकों ने इसे स्वीकार किया है कि समाज मनुष्य का .एक ब्रहतू रूप है । इसलिये नागरिक शास्त्र नागरिक के रूप में मनुष्य का दी विश्लेषण करता दै । नागरिक शास्त्र की परिभाषा ~~~ ~--- ~+ व = -------- ~-- ~~ ~ ~~~ # (1४168 18 11€ 8ल€८€ पा 866४5 10. पाह00ए6' (16 0110111018 0 {16 68४ [0088016 80८४] 11९. # (19108 18 € हप्रवङग ग [डा पौमा8, 0४४8) ध्मण- 1168 81 शुभात्‌ 0 16818 ग पराली € 11ए€ 10. 80061: { (र1०8 18 ४०९ शवङ्क फा) 7) एलभ्पला ४ इठ्लेभ ०12४०08,




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