राजपूताने का इतिहास भाग - 1 | Rajaputane Ka Itihas Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
408
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूगोलसंबंधी चर्यन १३
५
जभ्रमिवाले प्रतिददारवंशी राजाओं मे से राजा महेद्रपाल के ब्राह्मण गुरु राज-
शेखर की विदुषी पल्ली अवन्दिसुदसे चौहान चंश की थी । राजशेखर विक्रम
सदत् ६५० के आसपास जीवित था । इस समय के पश्चात् ब्राह्मणों का
प्ननिय वणे मे विवाह-सवेध होने का कोई उदाहरण वदी भिल्लतः । पि ते
प्रत्येक वे में मेद्माव यहां तक बढ़ता गया कि एक ही वश मे सेकडो शाखा
प्रशाखा फूटकर अपने ही वर्ण में शादी विवाह का संबंध जोड़े रददना तो दूर,
किंतु खानपान का संख्ग तक भी न रहा, एक ही जाति के लोग अपनी जाति-
वालों के साथ भोजन करने में भी दिचकने लगे; इस तरह देशभेद, पेशे और
मतभेद से अनेक जातियां बन गई, तो भी राज एतों ( क्षत्रियो ) मे यदह जातिभेदं
प्रवेश करने न पाया । उनसे विवाइ-संबंध तो अपनी जाति में ही होता है,
परंतु अन्य तीनों वर्ण के दाथ का भोजन करने में उन्हें कुछ मी सकोच नद्धं ।
ब्राह्मण, वैश्य और शूद्ों में तो इतनी ज्ञातियां हो गई हैं, कि उनके परस्पर के
भेदभाव झऔर रीति रिवाज का सविस्तर बणुन किया जावे तो कई जिद्दें भर जावें।
हिंदु मे बाह्मण, राजपूत, महाजन, कायस्थ, चारण, भार, सुनार, द्-
सेगा, दर्जी, लुहार, खुथार ( वदृ ), कुम्हार, माली, नाई, धोवी, जाट, भूजर,
मेर, कोली, घांची, कनक, वला, रेगर, भावी, महतर शादि अनेक जा-
तियां हैं । जंगली जातियों में मीने, भील, शिराखिये, मोगिये, बावरी, ससी,
सौंदिये झादि हैं । मुसलमानों में मुख्य और खान्दानी शेख, सेय्यद, मुगल और
पठान हैं । शन्य मुसलमान जातियों में रंगड़, कायमखानी, मेव, मेरात, खान-
ज़ादे, सिलावट, रंगरेज़, घोसी, मिश्ती, कसाई आदि कई एक हैं । शिया फिर्के
के मुसलमानों में एक कौम बोहरों की है जो बहुधा व्यापार करती हैं ।
राजपृताना के लोगो मे से श्रधिकतर तो खेती करते श्रोर कई गाय, भैस,
परेड, वकयी श्रादि जानवें को पालकर उन्दीसे अपना निर्वाह करते हैं ।
शा कई सेनिक या अन्य नोकरी, दस्तकारी व मज्ञदूरी कर पेट भरते,
ओर करई व्यापार कसते हँ 1 व्यापार करनेवालो भ मुख्य महाजन हैं,
८ ? ) चाहुार्कुलमोलिमालिा राजतेहरकहन्दयेषिएी ।
गचुणों किशमवन्ति्ुन्दरी सा पउन्जइउमेश्नमिच्चह ॥ ¢? ॥
राजशेखररचित “'कर्पूरमंजरी सट्रक;' हार्वड-संस्करण, प्र० ७ ।
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