इबबतूताकी भारतयात्रा या चौदहवीं शताब्दी का भारत | Ibabatutaki Bharatyatra Ya Chaudahavin Shatabdi Ka Bharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
444
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
ञरोर साथु-महात्माश्रौके दशंनखे तृप्त हो ७२६ हिजरीम रमं
ज्ञान मासकी & बीं तिथिको (€ चीरं श्रगस्त १३२६) बृहस्पति.
वारके दिन दमिश्क ' ज्ञा पहुंचा ।
१) मध्यचुगमे (पूरी रानी कहछानेवाला यह नगर वास्तव-
में अद्वितीय था । बतूताके कथनानुसार, नगरकी उस शोभाका वणेन
द्रना रेखनीके बसकी वातत न थी । यर्हपर उसैय्या वंके प्रसिद्ध
ख़लीफ़ा चलीद प्रथम ( ७०, - ०१५ हिजरी ) की बनवायी हुईं मसजिद
भी वास्तवसे जद्धितीय थी । सुसखमानोके भागमनसे पूवं इस स्थानपर
गिरजा बना हुआ था; फिर सुसरमान माक्रमणकारियोने दौ भोरसे भक्र-
मण कर इस गिरजेके आधे बाघे मारपर कृबजा जा जमाया, परन्तु
उनका एक सेनापति तख्वारॐे बलसे घुसा था भौर दूसरा शांतिके साथ,
अतएव उस सस्य आधे भाग पर ही अधिकार करना उचित समझा गया
जर वदपर मरजिद बनवा दी गयी । तदनतर जब स्थानकी कमीके
कारण मस॒जिद् घढ़वानेका उपक्रम हुआ तो इंसाइयॉके रुपया न ठेने पर
दूसरा भाघा भाग भी बरपूर्वक छीन लिया गया गौर ऐसी सुन्दर एवं
भव्य ससजिद बनवायी गयी कि ससारम इसकी उपमा सिलनी कठिन
थी । इसके चार दारके चारो भोर हीरा माणिक आदि बहुमूल्य वस्तुभंकी
दूकानें दौपडके बाज़ारॉमें बनी हुई थीं और वहाँपर स्फटिकके बने हुए
कुंढोंमें फ़ब्वारे चला करते थे । संसार-प्रसिद्ध जल-घरटिका भी, जो दिन-
रात समय बताया करती थी, इसी मसजिदसें लगी हुई थी भौर बतूता-
ने थी स्वयं उसको देखा था । कुरान शरीफद्टे दिग्गज पंडित भी तब
यहींपर रदकर सहस्रों विद्याथियोकों धर्मशास्त्र तथा अन्य विषयोंकी
शिक्षा दे देकर सुसलिम्-संसारमें भेजते थे । ““युसाझे पद-चिन्ह
मी नगरे ददशंनीय स्थनॉमें हैं । बतूताके समय, यददॉपर मठ तथा अन्य
घार्मिक संस्थाएँ भी भसंख्य थीं. और उनसे भाँति भॉँतिकी सहायता
सुसलसानोंको मिलती थी--यदि कोई संस्था मक्काकी यात्राका व्यय देती
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