हिन्दी - जैन - साहित्य - परिशीलन भाग - 2 | Hindi - Jain - Sahity - Parishilan Bhag - 2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आर्षो अध्याय
वर्तमान काव्यधारा ओौर उसकी बिभिन्न प्रदरत्तियां
टिन्दी जेन सात्यकी पीयूपधारा कल-कर निनाद करती हुई अपनी
शीतलतासे जन-मनक्रे सतापको आजमी दूर् कर रही दै। इस बीसवी
ग्रतान्दीमे भी जेन साहिखनिर्माता पुराने कथानकोको केकर दी आदु-
निक जली ओर आघुनिक माप्रामे दी सृजन कर रहे है । भक्ति, व्याग,
वीरनीति, शर गार आदिः विप्रयोपर अनेक ठेलकोकी ठेखनी अविराम
रूपसे चल रही है । देश, कार ओर वातावरणका प्रभाव इस साहित्यपर
भी पडा है 1 अतः पुरातन उपादानोमे थोडा परिवर्तन कर नवीन काव्य-
भवनोका निर्माण किया जा रहा है ।
मदहाकाव्योमे वर्धमान इस युगका श्रेप्ठकाव्य है । इसके र्चयिता
यशस्वी कवि अनूप शर्मा एम, ए. है । इस महाकाव्यकी शैली सस्कृत
काव्योके अनुरूप है । सस्कृतनिष्ठ हिन्दीमे वशस्थ,
ट तविरस्वित ओर मालिनी इत्तोमे यह स्वा गया है ।
उसमें नख-शिखवर्णन, प्रभात, सथ्या, प्रदोप, रजनी, ऋठ, सूर्य,
चन्द्र आदिका वर्णन प्राचीन काव्योके अनुसार है ।
इस महाकाव्यका कथानक भगवान् महावीरका परम-पावन जीवन
है । कविने स्वेच्छानुसार प्राचीन कथाचस्तुम हेरफेर भी किया है । दो-
चार स्थलेकी कथावस्तुम जैनधर्मकी अनभिशताके
कारण वेदिक-धर्मको स त्रैटाया ह} मगवानकी
चाल्न्रीटाकै समय परीक्ना्थं आये टृए देवस्पी सर्पका दमन् ठीक कृष्णके
कारिय-दमन के समान कराया है । सर्पकी भयकरता तथा उसके कारण
प्रकृति-विश्लुष्घता भी लगभग वैसी ही है] कचि करता है ।
चर्मान
कघावस्तु
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