साहित्य समालोचना | Sahitya Samalochna
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५५ रि सारित्य-समाक्तोचना
ह 1 वह् छाया चाहे जिस परिमाणा की हो । जिस प्रकार प्रकाश के स्वभावानु-
सार छाया में परिवर्तन होता है, उसी प्रकार कवि ' दय के विचार शौर
कत्पनाओं के श्रनुसार एक दी वस्तु भिन्न-भिन प्रकार के भाव उत्पन्न
करती है1‰ `
यह वैतानिक रीति से समाधान केवल अथं-रदित दी नहीं, वरन्
हास्यास्पद भी दै । विज्ञान मे जो चाया का श्रर्थ है, वह कविता में नहीं ।
किसी व्यक्ति का नाम मदन होने से हम उसे रत्ति का पति नदीं मान
सकते और न उस नाम ॐ संसग से उस पुरुष में सुन्दरता का भाव मान
सकते हैं । उसी प्रकार विज्ञान का छायाबाद कविता का छायावाद नहीं
कटा जा सकता ।
सच्चे छायावाद' की सफलता में ये चार बाधाएँ हो सकती हैं--
पहली बाधा तो अत्यधिक भावुकता का होना दै । कवि यदि पागल
होकर चिढ़ियों के चहचहाने मे विश्व की वेदना सुने तो वह ्रपनी
भावुकता क दसी करता ह । गधे के रेकने मे यदि वह विश्वव्यापी
संगीत सुने तो वह भी हास्यास्पद ही हे । यह कला का नाश चौर चाया-
-वाद का उपहास है ।
दूसरी बाधा सत्य के सौन्दयं में भावात्मक कर्पनाएँ करना है।
चास्तविक. सौन्दर्य कितना सच्चा, कितना सुकुमारं होता है। उसमें
श्ोधो.सीधी कट्पनार््यो का समावेश फूल को कयो से बेधना है--सुकमार
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