साहित्य समालोचना | Sahitya Samalochna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५५ रि सारित्य-समाक्तोचना ह 1 वह्‌ छाया चाहे जिस परिमाणा की हो । जिस प्रकार प्रकाश के स्वभावानु- सार छाया में परिवर्तन होता है, उसी प्रकार कवि ' दय के विचार शौर कत्पनाओं के श्रनुसार एक दी वस्तु भिन्न-भिन प्रकार के भाव उत्पन्न करती है1‰ ` यह वैतानिक रीति से समाधान केवल अथं-रदित दी नहीं, वरन्‌ हास्यास्पद भी दै । विज्ञान मे जो चाया का श्रर्थ है, वह कविता में नहीं । किसी व्यक्ति का नाम मदन होने से हम उसे रत्ति का पति नदीं मान सकते और न उस नाम ॐ संसग से उस पुरुष में सुन्दरता का भाव मान सकते हैं । उसी प्रकार विज्ञान का छायाबाद कविता का छायावाद नहीं कटा जा सकता । सच्चे छायावाद' की सफलता में ये चार बाधाएँ हो सकती हैं-- पहली बाधा तो अत्यधिक भावुकता का होना दै । कवि यदि पागल होकर चिढ़ियों के चहचहाने मे विश्व की वेदना सुने तो वह ्रपनी भावुकता क दसी करता ह । गधे के रेकने मे यदि वह विश्वव्यापी संगीत सुने तो वह भी हास्यास्पद ही हे । यह कला का नाश चौर चाया- -वाद का उपहास है । दूसरी बाधा सत्य के सौन्दयं में भावात्मक कर्पनाएँ करना है। चास्तविक. सौन्दर्य कितना सच्चा, कितना सुकुमारं होता है। उसमें श्ोधो.सीधी कट्पनार््यो का समावेश फूल को कयो से बेधना है--सुकमार † € 0८ ०८६ 9३5 ९९९००९8 ६४९ 50४1९66 07 प्या ४६१०१ &1त ८9518 1015 1129८ 813 {६०१९३ 8० 10ब्ह1एकणा 80 (106 6161 081. ४०71५ सनवि&ा 609 (6 उपलाः 18 0 0६८10. 00003 ६११६ 7156 108 ड0800छ, 90 80६61 01 जोड8 र8ए18 01110... 25 (96 प्र8076 2 ४ 808. ७ स्था] रद ध८८्०य्वा पहु ८० < फश्प्णण्हरणा {17178110 30 0०06९ 21, ६४०€ 587€ ०9१९६८६ ए८००८९8 0166 710६105 79 ४८८०८१५०५९ क १1 {०५1९8 89१ 1708106 610४5 04 ०८६१९ 7010,




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