महात्मा गांधी के धर्म दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या | Mahatma Gandhi Ke Dharm-darshan Ki Aalochanatamak vyakhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९८६६ ईँसवी को हुआ, महात्मा गांधी जाति के बाणिक थे, उच्मचस्द गांधी उफी ओता गांधी उनके दादाय, ओता गाधी कौ पटी पमौ सि थार तथा हुसरी पत्नी से दी णके हु, इन कः माश्यों मँ पाच्यं कव नाम कर्मन्द गाधी उफ कवा गाधी धा, जौ पौएव॑वर्‌ मेँ प्रधानमन्त्री ध, कर्मबन्द माधी की चार शादियां हुई, चौथी पत्नी ही महात्मा गाधी कौ माता धीं, उनका नाम पुती नाई था , गांधी जी की सता रक साध्वी स्त्री थीं, वे बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की सती थीं, महपत्मा गांधी ना विकास रे साधारण बाठक की तरह हुआ, गढ़ने में गांधीजी तेज नहीं थे, परन्तु रंमानदारो से काम करने वाढ़े थे, मैं सदा चार के पालम पर बहुत ज़ौर देते थे, सत्यवादी हारिश्चन्द्र ओर भवण-पितृनमकित हन दो नाटकों का गांधीजी पर बहुत पमाव पढ़ा, हारिश्चन्द्र की कथा से उन्होंने सत्य के पाठन का मत्व समफ ओर आजन्म उसका पान कयि, श्वण की कथा सुनकर माता-पिता का सेवा का व्रत उन्होने अन्त तक निभाया, गांधीजी मै धार्मिक गृन्थों कै पदन प जौए दिया, गांधीजी मै तुलसीदास रचित रामायण को धार्मिक साहित्थीं में श्रष्ठ माना, राजकौट में मागवृतु.. | कन पाठ प्रत्यक एकादशो कये हौता धा , गांधीजी के अनुसार भागवत्‌ धार्मिकता कौ जमा सकता है, . * राजकोट मैं गांधीजी को दिन्द्र ध्म तथा अन्य धर्मों के बारे में मा थोड़ी जानकारी का अवसर प्राप्त दूजा, उनके माता-पिता शिष्र तथा राम के मंदिरों में भी जाते थे, जैन शा थी गांधीजी कै पिताक पास आति थे, मै लीस धारि तथा व्यावहारिक बातें भी करते थे, मुसठमान तथा यारसी लीग मी गांधीजी के पिता के 'मित्र थे, वे छोग अपने-अपने धर्मों के बारे में बातें किया करते थे, गांघोजो अपने पिता के सम्पर्क में एहे, शत! उनपर इन सभौ फा बहुत प्रभाव पदा, गांधीजी हर तरह की साधना की छा से ग्रहण करतेध, साधु-संतीं कै अनुभवौ पर जोर बचनों पर सनकी असीम अदा थी , लेविंन जिस पिष भौ चन्‌ कौ ठन्न स्वीकार किया, उसे तक,खुद्धि और अनुभव की कमोटी पर फंसे बिना वे नहीं रहे छौक सेवा करते हुए गांधीजी ने जो शुकक भी राजन्काज का और राजनीति का अध्ययन व्यित, उसके कारणः उनकी व्यवहार कुशलता बढ़ा ही लीवर ई, यह 'व्यवछ्ाएकुशलला उन्हें जो कुछ मी मार्ग सुफपती थी उसपर चलने से फल गांधोजी




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