श्री महादेव की डायरी | Mahadevbhai Ki Dayri

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Mahadevbhai Ki Dayri  by राधाकृष्ण - Radhakrishn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८०) दिन्दुस्वान के लिए. भपिक-सै झपिक यही कदा ला सकता दे कि यदों कुछ म्पक्तियां ने बूसरे देशों सै भ्रइ्सा के सिद्धान्त को लोकप्रिय नाते के प्रथिक बड़े प्रयत्न अधिक सफशता के साथ कियं हैं । पन्च इस पर सै मदद राम बनाने का कारण नहीँ दे कि शोगों मैं अदिंसा के सिद्धान्त की थे गदरी लम गयी हैं ।”” **प्रा्सा का पार दो उठ मनुष्य को ठिलाना है, मिठका भीवन थोश से उमड़ रहा दो और थो झपने किरोधी के सामने छठी शोलकर सीधा ला रद सता हो । मेरे खयाल है झहिंसा को पूरी तरइ से समकने के लिए झौर श्रष्छी दर पमाने के लिए शारीरिक साइस का विकास होना श्रनिदायं दे ।” ङती मी म्तुप्यके मनम प्रवा षानीपूर प्रिमा धिन पटने $ किए प्राखवान्‌ शीर एरय रच्केमनके प्रष्ठी ठर परिपक्व होने तक मुझे प्रतीदा करनी दोगी 1” श्वना कने $ शद मै झपते शामने उपस्थित दोमेबाली कठिनार्पों पेश करते हैं / धस बिजार को व्यवहार में किस तरह परिशत किया थाय ! भारुषाम्‌ शरीर दोने का मतलब कया 1 दिस्युस्तानियों को शत भारश करने कौ तालीम मै डित इद तक खाना पढ़ेंगा ! कया इर एक म्पक्ति को इस ठाश्ीम मैं पास दोना पड़ेगा ह था इतना करी है कि स्वत्रता का बाठागरम्य उत्पन्न दो जाम ब्ौर शोगों में इधियार उयमे लिना भी द्फ्ने झासपाठ के बाताइरस से ही झागरमऋ शाइस शा जाय ! में स्पनता हूँ कि यूलरा निचार सही दे 1” फिए यह हसम्घते हैं कि झपते सिद्धान्त कौ पुष्टि के लिए पुद्ध का मी मे शिस तरइ उपयोग ऋर सेना घाइते ये । सब्र में इरएड दिन्युस्तानी से लेना मैं मरदी शेने के सिए, कदता हूँ, ठग लाय-हाप उसे बद मी ऋइतठा रहता हूँ कि को सना




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