वार्षिक प्रतिवेदन | Varshik Prativedan

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Varshik Prativedan by राधाकृष्ण - Radhakrishn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० ही वापस कर लिया और २ प्रत्याहित रिक्तियां, जिनके लिए चुनाव किया जा चका था, घटित नहीं हुई । ६ रिक्तियो के विषय मं आयोग ने कोई संस्तुति नहीं की क्योकि कुछ अग्रेतर सुचना या चरित्रावलियां नहीं प्राप्त हुई थीं ।. नईप्रक्रिया के अनुसार स्थायी रिक्तियों के लिये चनाव करते समय आयोग ने काफो बड़ों संख्या में दोर्घावषि स्थानापंत्र और अस्थ यो रिक्तियों के लिये भी अन्यधियों को संस्तुत किया था, जिनमे से सब परिशिष्ट ५ मं नहीं दिखलाई गई *। ५--प्रतिवेदनाघीन वर्ष में ४५१ रिक्तियों में पदोन्नति से संबंधित ४३ प्रकरणों को जिनके विवरण परिशिष्ट ५-अ मं दिये हुये है, भरत्येक के सामने अंकित कारणों से निपटाया नहीं जा सका यद्यपि इन प्रकरण मं से कुछ के विषय मे काफी काम वषं कै दौरान मे किया ज शका था । प ६--परिशिष्ट ५ को मद संख्याओं ठ, ५, ८) ९ १० १९१, १३, १४, १५; २५, ४९. तथा ६० के सामने दिखलाये हुये पदों के लिये चुनाव नई प्रक्रिया के अनुसार आयोग के एक सदस्य की अध्यक्षता में चुनाव समितियों द्वारा पात्र अभ्यधियों का साक्षात्कार किये जाने के बाद किया रया। अन्य प्रकरणों में (मद संख्याओं ५३ और ५५ को, जिनका. निर्देश पैरा ९ में नीचे किया गया है; छोड़ कर) आयोग ने पात्र अभ्यधियों की चरित्रावलियों का ही अवलोकन करके अपना परामदश दिया! ७--३४५ रिक्तियों के संबंध मं आयोग के पराम यथोचित. रूप से स्वीकार कर लिये गये और ११६ रिक्तियों के संबंध मं नियुक्ति प्राधिकारियों हारा जारी किये गये आदेज्ञ वषं की समाप्ति तक प्राप्त नहीं हुये थे । ८--गत प्रतिवेदन के पृष्ठ ९ के पैरा ४ में निर्देशित सभी ३४ उपाधिकारियों के संबंध में भी आयोग का परामर्श, जिसके विषय में नियुक्ति आज्ञायें १९५५-५६ के अन्त तक नहीं प्राप्त हुई थीं, मान लिया गया। ९--गत प्रतिवेदन के पृष्ठ ९ के पेरा ४ में निर्देशित १७ उपाधिकारियों के मामलों पर, जो आयोग के पुनविचार के लिये लौटा दिये गये थे, आयोग ने प्रतिवेदनाधोन वर्ष सें २७ उपाधि- कारियों का साश्लात्कार करने के बाद अपना पराम दिया। आयोग का परामर्श यथोचित क्प से स्वीकार किया गया। १०--अधीनस्थ कृषि सेवा के ग्रूप दो में से ग्रूप एक में पदोन्नति के एक प्रकरण पर विचार करते समय आयोग ने देखा कि संबंधित क्मंचारी अपने किसी दोष के कारण नहीं, बल्कि कृषि संचालक के कार्यालय की असावधानी के कारण पहले पदोन्नत नहीं किया गया था 1 इसलिये उन्होंने परामर्श दिया कि ज्येष्ठता के मामले में उसकी हानि नहीं होनी चाहिये और जिस कर्मचारी की असावधानी के कारण उसके मामले पर उचित समय पर विचार नहीं किया जा सका, उसके विरुद्ध उपयुक्त कायंवाही भी की जानी चाहिये। जासन ने पराम भान चे लिया और तदन्‌सारं अदेश जारी किया । '९--अस्थायी नियुक्तियो का नियमितकरण ५६१ अभ्याथयों की एक वषं से अधिक की अथवा एक वषं से अधिक होने की सम्भावना वाली अस्थायी नियुक्तियों के निथमितकरण के प्रकरणों को, जो लोक सेवा आयोग (त्यो का परिसीमन) विनियमो, १९५४ के विनियम ५ (क) तथा ६ (ग) के अन्तर्गत निर्देदित किये गये थे, आयोग ने प्रतिवेदनाघीन वषं में निवटाथा । इनके विस्तृत विवरण परिशिष्ट ६ मं दिये गयं हं। २--उपरिनिदेशित ५६१ अर्भ्याथयों सें से ४७० अभ्थथयों की निरम्तर अस्थायी नियुक्ति को आयोग ने अनुमोदित किया ओर ४३ की नहीं । परिशिष्ट ६ के अभ्युवित-स्तम्भ भं जहां कुछ ओर लिखा है, उसको छोडकर, जो अनुमोदन दिया गया था; वह॒ अल्पावधि वाके




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